
नव वर्ष नया सबेरा के द्वार पर महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग ।
वर्ष 2020 को हमनेअलविदा कह दिया है , जबकि 2021 का आगाज़ हो चुका है।नए वर्ष के नए सूरज की लालिमा फैल चुकी हैं।संक्ताभ किरणे नूतन आभा मंडल में अपना सुरभित विस्तार कर चुकी हैं।सुकुमार प्रकृति अपने जन जीवन की उन्मुक्त अंगड़ाई ने सौन्दर्य व सुहाड भविष्य का भाव पूर्ण आव्हान कर रही है।सूर्य रथ का पहिया नए काल के सृजन व संरचना के उद्देश्य से गंतव्य के लिए निकल चुका है।ऐसे में संकल्पों का एक भाव विनम्र मुद्रा में अपनी दृढ़ता का व्रत दोहरा रहा हैं।तिथियों का एक मुकम्मल समूह हर वर्ष किसी न किसी इतिहास की रचना करता हैं।गुजरे हुए क्षण ही आने वाले दिनों के दिग्दर्शक बनते हैं।कॉल चक्र की गति थमती नहीं वह सदैव चलती रहती हैं।।बस,यादे रह जाती हैं।जो हमे प्रेरित करती रहती हैं आगे बढ़ने को।वैसे 2020 हमे कई मायने में यादगार रहेगा।सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही दृष्टिकोण से इसे देखा जाएगा।एक ओर जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में व्यापक आंदोलन खड़ा हुआ वहीं वर्ष 2020 को दुनियां जब भी कोरोना संक्रमण के लिए याद करेगी ,तब चीन मानवता को संकट में डालने वाले खल राष्ट्र के रूप में चर्चित होगा।दूसरी ओर किसान आंदोलन के अलावे उत्तर प्रदेश में हाथरस और बलरामपुर में दलित समाज की एक बेटी के साथ रेप की घटना ने नारी अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह लगते हुए जनमानस को झकझोर कर रख दिया।इस घटना ने पूरी मानवता पर ही प्रश्न चिन्ह लगाया।देश की कोई बेटी दलित नहीं हैं। हर बेटी देश की आन,बान शान,और ताज हैं।संसाधनों पर पहला हक उनका ही हैं।उन्हें एक सुखद वातावरण प्रदान करना सभी पुरूष जाती का दायित्व हैं।जिस समाज में नारी भयभीत, असुरक्षित और असम्मानित होगी,वहाँ स्वयं ईश्वर भी उसके पतन को रोक नहीं सकते।निर्भया से हाथरस तक 7 साल 9 महीने में 2,48,600 रेप फिर क्या अदालत और पुलिस प्रशासन।जाते जाते घटी इस घटना ने न केवल देश बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को गहरा आघात पहुँचाया हैं।तमाम बातों के बीच जो सकारात्मक तथ्य उभरकर सामने आया हैं।वह यह कि भारत में आज़ादी के सात दशक बाद एक बार फिर बदलाव पर व्यापक बहस होने लगी हैं।बदलाव चाहे भ्रष्टाचार या देश की लचर कानून व्यवस्था के खिलाफ सख्ती बरतने की हो।यह सवाल उठना लाज़िमी हैं कि अपने को सभ्य और सुसंस्कृत देश कहने वाले भारत में आज ऐसी परिस्थिति क्यों उत्पन्न हो गई हैं ?कहाँ खो गई हैं नैतिकता ? भ्रष्टाचार और कुकृत्य ये दोनों ही बातें कानून बदलने से नहीं रुक सकता।इसके लिए नैतिक स्तर पर पहल करने की जरूरत हैं।आज बहस होने लगी हैं सामाजिक व्यवस्था पर,शिक्षा व्यवस्था पर और सांस्कृतिक बदलाव पर।कहीं न कहीं आर्थिक विकास की अंधी दौड़ में हमसे चूक हुई हैं।इन सभी के बीच एक खास बात जो देखने को मिली उसमें मीडिया की सजगता की भूमिका सराहनीय रही।मीडिया वर्षों बाद अपनी महती भूमिका को समाज के सामने दिखाया।मीडिया ने एक बार फिर यह साबित किया कि यदि ईमानदारी से प्रयत्न किया जाय तो आज भी मीडिया जन आंदोलन खड़ा कर सकती हैं।नव वर्ष 2021 महंगाई भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग तथा आत्म चिन्तन का वर्ष होगा।इसमें दो राय नहीं हैं कि भारतीय जन मानस जाग चुका हैं।उसमें बदलाव के सुर आसानी से पहचाने जा सकते हैं।उम्मीद की किरण दिख रही हैं।सावधान व्यक्ति पहले से ही उठकर सूरज के आने की प्रतीक्षा करता हैं।सूरज की पहली किरणों से ही वह अपने को सराबोर कर लेता हैं।जीवन की यही सच्ची पहचान हैं।मैंने सूरज को कई तरह से देखा हैं।सूर्योदय का कई बार कई अर्थ निकाला हैं।वह कभी हंसा हैं तो कभी नई दृष्टि देता हैं।वर्ष 2020 की घटनाओं से हमें सिख लेने की आवश्यकता हैं।ताकि वर्ष 2021 में भारत विश्व के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत कर सके कि भारतीय लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को संविधान के तहत जो अधिकार प्राप्त हैं, उसकी रक्षा किसी भी कीमत पर इस राष्ट्र में किया जाता हैं।भारतीय जहां अपने अधिकार के लिए संघर्ष करने में पीछे नहीं रहते।उसी प्रकार अपने कर्तव्य का पालन भी अपनी प्राणों की आहूति देकर करते हैं।इतिहास गवाह हैं कि आज़ादी प्राप्त करने के लिए हमारे देश के युवा क्रांतिकारियों ने हंसते -हंसते फांसी का फंदा चुना था।भारत की यह विशेषता रही हैं कि यहाँ सभी धर्मों,वर्गो व तबको को अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने की आज़ादी रही हैं और जब जब उसके इस अधिकार पर किसी ने भी प्रहार करने का प्रयास किया उसे इस देश के युवाओं ने करारा जवाब दिया चाहे उसे इसकी कितनी भी बड़ी क़ीमत क्यों न चुकानी पड़ी हो।आज एक बार फिर हमारे राष्ट्र के रहनुमाओं के सामने भ्रष्टाचार व कानून दो बड़ा प्रश्न व मुद्दे उठ खड़ा हुआ हैं।जिससे राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित हो रहा है।इसलिए इन दोनों ज्वलंत मुद्दों पर सम्पूर्ण राष्ट्र का विचार एक होना चाहिये न कि हम एक दूसरे को दोषी ठहराने के चक्कर में मुख्य मुद्दें से भटक जाय।कानून व्यवस्था व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे यह सब चाहता हैं।हम यहाँ अपने अधिकार की बात करते हैं।लेकिन अपने कर्तव्य से मुंह चुराना चाहते हैं। ” बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलया कोई , जो दिल देखा अपना,मुझे से बुरा न कोई” । इन दो पंक्ति में सभी सवाल का जवाब छुपा हैं।आज प्रत्येक भारतीयों को आत्म मंथन करने की आवश्यकता हैं कि क्या वास्तव में हम दिल से इन समस्याओं का अंत चाहते हैं , अगर हमारा दिल कहता हैं, जी हाँ तो सर्व प्रथम हमें यह प्रारंभ कर देना होगा कि हम न भ्रष्टाचार करेंगे और न ही भ्रष्टाचार सहेंगे।दूसरी बात कानून व्यवस्था की है ,इसे स्थापित करने की जवाबदेही सरकार की तो हैं।लेकिन हमें पूरी नैतिकता के साथ सरकार व व्यवस्था की मदद के लिए आगे आना होगा।तब कानून का राज्य स्थापित हो पाएगा । अगर हम अपनी भूल या गलती पर पर्दा डालने का प्रयास करेंगे और दुसरों के भूल व गलती से पर्दा उठाने का प्रयास करेंगे तो हम कभी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते।देश में इससे अराजकता का माहौल बन जाएगा।सनातन काल से यह चलता आ रहा हैं कि जब-जब अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, पाप बढ़ा हैं और तंत्र विफल हुआ हैं तो प्रकृति ने अपना रंग दिखाती रही हैं। इसलिए विनाश भी हुआ हैं,देव आये हैं और दानवों का नाश किया हैं। इसलिए हे महामानव सत्य को स्वीकारो,शक्ति का सम्मान करो वरना शक्ति विहीन होकर अपने अंजाम के लिए तैयार रहो। क्योंकि इसके लिए सिर्फ और सिर्फ तुम जिम्मेदार होंगे।सबसे अन्त में सभी रास्ट्रवासियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामना देते हुए यही अपील करता हूं कि जो जहां हैं वहीं सच्चाई, ईमानदारी और नैतिकता के साथ देश और समाज के लिए कुछ करें।ताकि हमारा देश एक बार फिर सोने की चिड़िया कहलाने का गौरव प्राप्त कर सके ।
प्रदीप कुमार नायक