Home सुपौल देशी कट्टा के साथ ग्रामीणों-देशी कट्टा के साथ ग्रामीणों के हत्थे चढ़ा बकरी चोर।

देशी कट्टा के साथ ग्रामीणों-देशी कट्टा के साथ ग्रामीणों के हत्थे चढ़ा बकरी चोर।

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ग्रामीणों ने सुनाई क्या सजा देखिए। के हत्थे चढ़ा बकरी चोर।
ग्रामीणों ने सुनाई क्या सजा देखिए।

रिपोर्ट:बलराम कुमार सुपौल बिहार।

मामला सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज अनुमंडलीय मुख्यालय अंतर्गत वरकुरवा पंचायत के वार्ड नं0-08-में बकरी चुराने आए चोर की है।
मिली जानकारी के अनुसार रात्रि के समय चोरी की नियत से वरकुरवा पंचायत के मंडल टोला वार्ड नं0-08-में उमेश मंडल, के घर पर एक बाईक पर सवार तीन लोग आए।
चोरों ने बाईक को खड़ा कर दिया बाद एक चोर बकरी चुराने के लिए अन्दर प्रवेश किया।
दो चोर सड़क पर बाईक लेकर खड़ा था।
तभी अचानक बकरी मालिक उमेश मंडल,की नींद खुली तो देखा की बंधे हुए बकरी को चोर चुरा कर ले जा रहा है।
बकरी खोलकर ले जा एक चोर प्रदीप कुमार यादव,जो डपरखा पंचायत वार्ड नम्बर-13-का निवासी है।
उसे घरवालों के द्वारा पकड़ लिया गया।
वहीं बाईक सहित दो चोर भागने में सफल रहा।
पकड़े गए युवक को ग्रामीणों ने जम कर पिटाई की।
बाद पुछ ताछ करते हुए परिवार वाले को बुलाने को कहा।
सूचना मिलने पर पकड़े गए बकरी चोर युवक के ससुर मदन यादव,एवं डोमी यादव, वहां पहुंचे तो ग्रामीणों ने उन्हें भी बंधक बना लिया।
आनन फानन में हुई पंचायत में उन्हें तालिबानी सजा सुनाई।
उसके हाथ पैर बांधकर बेरहमी से पिटाई की गई।
युवकों के सर से बाल मुड़वा दिया गया।
उसके बाद सिर पर चूना से चोर -420- लिख दिया फिर रस्सी से बांधकर गांव में घुमाया।
उसके बाद भी ग्रामीणों का मन नही भरा तो तीनों के हाथ पैर बांधकर चौकी पर लेटा कर उनकी जमकर पिटाई की।
जब सोशल मीडिया पर तेजी से वीडियो वायरल होने लगा तब त्रिवेणीगंज पुलिस को भनक लगी किसी तरह पुलिस ने प्रदीप कुमार यादव,को भीड़ से बचा कर थाना ले आई।
लेकिन मदन यादव, एवं डोमी यादव, जो अभी भी ग्रामीणों के कब्जे में हैं। पकड़े गए युवक के पास से एक देसी कट्टा भी बरामद किया गया।
वहीं बकरी चोरों ने दो साथी का नाम भी बताया।
जो फरार चल रहा है।
हालांकि फरार हुए दो बकरी चोरों की गिरफ्तारी अबतक नहीं हो पाई है। मामले को लेकर त्रिवेणीगंज थाना में आवंटित सरकारी मोबाइल नंबर-9431822553- पर कई बार संपर्क किया गया।
लेकिन सेवा से बाहर बताया गया।
आए दिन देखा जाता है की पदाधिकारी के पास जो आवंटित सरकारी मोबाइल नंबर है या तो वो बन्द रहता है या फिर सेवा में नहीं रहता है।
आखिर सरकार पदाधिकारियों को सरकारी मोबाइल नम्बर क्यों मुहैया कराती है।
जिससे जनता को सूचना देने में आसानी हो।
पदाधिकारी तो बदल जाते हैं।
लेकिन सरकारी मोबाइल नम्बर नहीं बदलते हैं।
बिहार में अक्सर देखा जा रहा है की सरकार द्वारा दिए गए सरकारी मोबाइल नंबर का कुछ पदाधिकारी द्वारा कोई रिस्पॉन्स नहीं लिया जाता है।
कुछ पदाधिकारी तो सरकारी मोबाइल नंबर सेवा में नहीं रखते हैं।
एक तरफ सरकार जनता के सुविधा लिए सरकारी मोबाइल नंबर पदाधिकारियों को मुहैया कराती है।
लेकिन कुछ पदाधिकारी हैं की इसका महत्व नहीं देते हैं।
अब देखना लाजमी होगा की सुशासन बाबू की सरकार में पदाधिकारियों की मनमानी कबतक चलेगी।
या फिर सरकारी मोबाइल नंबर का रिस्पॉन्स नहीं लेने वाले पदाधिकारियों में कब तक सुधार आती है।

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