
सहरसा का ऐतिहासिक सफर: मिथिला की धरती से आधुनिक विकास की ओर
सहरसा, बिहार | 4 मई 2025
ब्यूरो रिपोर्ट –
बिहार के कोसी अंचल में स्थित सहरसा ज़िला आज केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। मिथिला संस्कृति की मिट्टी से उपजा यह ज़िला सदियों से संघर्ष और उम्मीदों का पर्याय रहा है।
इतिहास में जड़ें – जनक की धरती से आज़ादी के आंदोलन तक
सहरसा प्राचीन काल में मिथिला राज्य का हिस्सा रहा, जो ज्ञान और संस्कृति का विश्वविख्यात केंद्र था। कहा जाता है कि यह वही भूमि है जहाँ राजा जनक ने शासन किया और जहाँ माता सीता का जन्म हुआ था। वैदिक काल में यह क्षेत्र विद्वानों और संतों की कर्मभूमि रहा है।
बौद्धकाल में यह इलाका पाल वंश के अधीन था, जिन्होंने शिक्षा और कला को बढ़ावा दिया। इसके पश्चात दिल्ली सल्तनत और मुग़ल शासन के अधीन सहरसा एक सीमांत क्षेत्र बना रहा, जहाँ शासन की पहुँच सीमित थी।
अंग्रेज़ी शासन में सहरसा को ज़मींदारी प्रथा ने जकड़ लिया। सामंतवाद ने ग्रामीणों और किसानों का शोषण किया। बावजूद इसके, स्वतंत्रता संग्राम के समय यहाँ के वीरों ने आंदोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता सेनानी बाबा विशेश्वर सिंह, गंगाराम झा और श्रीपति झा जैसे नाम आज भी लोगों की स्मृति में जीवित हैं।
कोसी: एक अभिशाप और चुनौती
कोसी नदी को “बिहार की शोक” कहा जाता है — और सहरसा इसकी सबसे बड़ी पीड़ित भूमि रही है। कोसी की धारा अस्थिर है, और उसका बार-बार मार्ग बदलना यहाँ के गाँवों, खेतों और जीवन को बर्बाद करता रहा है।
हर साल आने वाली बाढ़ ने हज़ारों लोगों को विस्थापित किया है। मवेशी, फ़सलें और घर — सब कुछ बहा ले जाने वाली यह नदी यहाँ के जीवन का सबसे बड़ा संकट बन गई। लेकिन इन संकटों के बावजूद, लोगों ने संघर्ष और आत्मबल से आगे बढ़ने का रास्ता चुना।
1954 के बाद: जिला बना, दिशा बदली
भारत की आज़ादी के कुछ वर्षों बाद, 1954 में सहरसा को ज़िला घोषित किया गया। पहले यह भागलपुर जिले का हिस्सा था। इसके बाद यहाँ प्रशासनिक विकास की नींव रखी गई।
सहरसा धीरे-धीरे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का केंद्र बनने लगा। सरकारी स्कूलों के साथ-साथ कई निजी संस्थान भी स्थापित हुए। सहरसा कॉलेज, बीएन मंडल विश्वविद्यालय, और कई ITI/पॉलिटेक्निक संस्थानों ने इस क्षेत्र में युवाओं को नई दिशा दी।
संस्कृति और पहचान: मैथिली की आत्मा
सहरसा की संस्कृति गहरे रूप में मैथिली भाषा और परंपराओं से जुड़ी है। यहाँ विद्यापति की रचनाओं का व्यापक प्रभाव है। मिथिला पेंटिंग, लोकगीत, झिझिया, समा-चकेवा, और विवाह गीत इस क्षेत्र की पहचान हैं।
त्योहारों में छठ पूजा, होली, और दुर्गा पूजा अत्यंत धूमधाम से मनाए जाते हैं। विवाह समारोहों में गाए जाने वाले पारंपरिक गीत और महिलाएं द्वारा गाया जाने वाला ‘सोहर’ सहरसा की सांस्कृतिक जीवंतता को दर्शाते हैं।
आधुनिक सहरसा: उभरता परिवहन और व्यापार केंद्र
आज का सहरसा बदल रहा है। सहरसा जंक्शन पूर्व-मध्य रेलवे के प्रमुख स्टेशनों में शामिल हो गया है। यहाँ से सहरसा-नई दिल्ली, पटना, कटिहार, और दरभंगा के लिए नियमित ट्रेनें चलती हैं।
सहरसा-फुलौत पुल और कोसी महासेतु जैसे परियोजनाओं ने यहाँ की संपर्क सुविधा को बेहद मजबूत किया है। सहरसा अब बिजनेस हब के रूप में उभर रहा है — खासकर कृषि-उत्पाद आधारित व्यापारों के लिए।
शिक्षा और स्वास्थ्य में प्रगति
स्वास्थ्य सेवाओं में पहले की तुलना में काफी सुधार हुआ है। सदर अस्पताल, निजी क्लिनिक और फार्मेसियों की संख्या बढ़ी है।
शिक्षा में भी अनेक निजी विद्यालयों और कोचिंग संस्थानों की भागीदारी से शहरी क्षेत्र के बच्चों को बेहतर अवसर मिल रहे हैं। डिजिटल शिक्षा की पहुँच भी धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल रही है।
सरकार की नई योजनाएँ और आशाएं
राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने सहरसा के लिए कई विकास योजनाओं की शुरुआत की है, जिनमें शामिल हैं:
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प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना
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जल जीवन मिशन
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दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना
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डिजिटल ग्राम योजना
इन योजनाओं के तहत ग्रामीण बुनियादी ढाँचा मजबूत किया जा रहा है। AIIMS दरभंगा और सहरसा से जुड़ी रेललाइन परियोजनाएँ इस क्षेत्र के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती हैं।
निष्कर्ष: संघर्ष की मिट्टी से संभावना की उड़ान
सहरसा की कहानी सिर्फ बाढ़, विस्थापन और संघर्ष की नहीं है; यह उस ज़िद और आत्मबल की कहानी है, जिसने इस ज़िले को अंधकार से उजाले की ओर मोड़ा है। आधुनिक सहरसा एक ऐसे भविष्य की ओर अग्रसर है, जहाँ परंपरा और प्रगति साथ-साथ चलें।
विषय | विवरण |
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स्थापना वर्ष | 1954 |
प्रमुख भाषा | मैथिली, हिंदी |
नदी | कोसी नदी |
प्रमुख स्थान | सहरसा जंक्शन, बटराहा घाट |
शिक्षा संस्थान | सहरसा कॉलेज, बीएनएमयू |
लोकप्रिय नेता | कर्पूरी ठाकुर, बीएन मंडल |
उद्योग/व्यापार | कृषि, धान, मक्का, सब्जियाँ |