
सहरसा.
बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी 102 और 108 एंबुलेंस सेवाएं, जिन्हें जीवन रक्षक सेवाएं कहा जाता है, अब खुद मरीजों की जान के लिए खतरा बन चुकी हैं। जिले के कई सरकारी अस्पतालों में तैनात एंबुलेंस की स्थिति चिंताजनक और खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
🚑 ईएमटी कर्मियों की कमी और लापरवाही
एंबुलेंस में तैनात इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (EMT) कर्मियों की भूमिका मरीज की जान बचाने में सबसे अहम मानी जाती है। लेकिन सहरसा और आसपास के अस्पतालों में बड़ी संख्या में ऐसे EMT हैं जिन्हें –
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ऑक्सीजन सिलेंडर का सही उपयोग करना नहीं आता।
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प्राथमिक चिकित्सा प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं है।
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कई बार वे यह तक नहीं पहचान पाते कि सिलेंडर भरा है या खाली।
नतीजा यह होता है कि मरीज को समय पर ऑक्सीजन या दवा नहीं मिल पाती और कई गंभीर मरीजों की जान चली जाती है।
चिकित्सकों की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशिक्षित EMT को –
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ऑक्सीजन थेरेपी
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बीपी जांच
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CPR (प्राथमिक जीवन रक्षक प्रक्रिया)
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ड्रिप चढ़ाना
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आपात चिकित्सा तकनीक
में दक्ष होना चाहिए। लेकिन अधिकांश EMT या तो अधूरे प्रशिक्षण वाले हैं या उनके पास व्यावहारिक अनुभव की कमी है।
भर्ती प्रक्रिया पर सवाल
सूत्र बताते हैं कि EMT की भर्ती में एजेंसियों ने कागजी योग्यता के आधार पर चयन कर लिया, जबकि व्यावहारिक प्रशिक्षण पर ध्यान नहीं दिया।
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भर्ती प्रक्रिया सवालों के घेरे में है।
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एजेंसियों ने अपने फायदे के लिए नियमों की अनदेखी की।
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इसका सीधा खामियाजा आम लोगों को अपनी जान देकर उठाना पड़ रहा है।
जनता की नाराज़गी
कई बार मरीजों के परिजन एंबुलेंस सेवाओं की लापरवाही पर गुस्सा जाहिर कर चुके हैं। लोग कहते हैं –
“अगर जीवन रक्षक कही जाने वाली एंबुलेंस ही मौत का कारण बन जाए तो यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़ा करता है।”
लोगों की मांग
लोगों ने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से ये मांग की है –
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सभी EMT कर्मियों की योग्यता की जांच की जाए।
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अयोग्य पाए जाने वालों को तुरंत हटाया जाए।
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योग्य EMT को व्यावहारिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाए।
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एंबुलेंस में मौजूद दवाओं और उपकरणों की नियमित जांच हो।
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ऑक्सीजन सिलेंडर, बीपी मशीन और दवाओं का रिकॉर्ड पारदर्शी तरीके से सार्वजनिक हो।
बड़ा खतरा
कोसी का पीएमसीएच कहे जाने वाले सदर अस्पताल और प्रखंड अस्पतालों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यदि प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की तो कभी भी कोई बड़ी त्रासदी सामने आ सकती है।
निष्कर्ष:
सरकार की महत्वाकांक्षी एंबुलेंस सेवा तभी सार्थक होगी जब यह वास्तव में मरीजों की जान बचाए, न कि लापरवाही और कुप्रबंधन की वजह से मौत का कारण बने।