
27 सितंबर का दिन भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम तिथि के रूप में दर्ज है। इस दिन जन्म हुआ उस क्रांतिकारी का, जिसने सिर्फ 23 साल की उम्र में अंग्रेज़ी हुकूमत की जड़ों को हिला दिया। वह थे शहीद-ए-आजम भगत सिंह।
भगत सिंह का नाम आजादी की लड़ाई में त्याग, बलिदान और क्रांतिकारी विचारधारा का प्रतीक बन चुका है। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को यह दिखा दिया कि भारत का युवा गुलामी स्वीकार नहीं करेगा।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
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जन्म: 27 सितंबर 1907
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स्थान: लायलपुर जिला, पंजाब (अब पाकिस्तान का फैसलाबाद)
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पिता: किशन सिंह
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मां: विद्यावती
उनका परिवार पहले से ही देशभक्ति और क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ा हुआ था। यही कारण था कि भगत सिंह को बचपन से ही स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा मिली।
जलियांवाला बाग हत्याकांड और असर
1919 का जलियांवाला बाग हत्याकांड भगत सिंह के जीवन का अहम मोड़ साबित हुआ। उस समय वे केवल 12 साल के थे, लेकिन इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गहरा आक्रोश भर दिया।
कहा जाता है कि घटना के अगले दिन भगत सिंह जालियांवाला बाग पहुंचे और वहां की मिट्टी अपने साथ ले आए। उन्होंने उस मिट्टी को हमेशा अपने पास रखा, ताकि उन्हें देशभक्ति की याद दिलाती रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होना
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भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई की।
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यहां उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) जॉइन की।
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उनका मानना था कि सिर्फ अहिंसा से आजादी नहीं मिलेगी, इसके लिए क्रांति की जरूरत है।
लाला लाजपत राय की मौत और प्रतिशोध
1928 में साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज किया गया, जिसके चलते उनकी मौत हो गई।
इस घटना से भगत सिंह गुस्से से भर गए और उन्होंने अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या कर दी। यह घटना उन्हें पूरे देश में युवाओं का नायक बना गई।
असेंबली बमकांड (1929)
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके।
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उनका मकसद किसी की जान लेना नहीं था।
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उनका संदेश था – “गुलाम भारत की आवाज़ सुनो।”
उन्होंने खुद गिरफ्तारी दी ताकि अदालत को अपने विचार रखने का मंच बना सकें।
जेल जीवन और विचारधारा
जेल में भगत सिंह ने कई किताबें पढ़ीं, जिनमें मार्क्सवाद और लेनिनवाद से जुड़ी रचनाएँ शामिल थीं।
वे मानते थे कि भारत को सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक बराबरी की भी जरूरत है।
उनका मशहूर नारा था –
“इंकलाब जिंदाबाद”
मुकदमा और फांसी
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23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई।
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केवल 23 साल की उम्र में उन्होंने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूमा।
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उनकी शहादत ने पूरे भारत में क्रांति की चिंगारी जला दी।
भगत सिंह की विचारधारा
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धर्मनिरपेक्षता: उन्होंने कभी धार्मिक भेदभाव को जगह नहीं दी।
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युवाओं की भूमिका: उनका मानना था कि युवा देश के असली कर्णधार हैं।
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क्रांति का अर्थ: उनके अनुसार, क्रांति का मतलब हिंसा नहीं बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव है।
देश पर प्रभाव
भगत सिंह की शहादत के बाद पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा।
महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने भी उनके बलिदान को नमन किया।
निष्कर्ष
भगत सिंह ने यह साबित कर दिया कि उम्र छोटी हो या बड़ी, हिम्मत और जज़्बा हो तो इंसान अमर हो सकता है।
आज उनकी जयंती पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित होते हैं और हर कोई उन्हें शहीद-ए-आजम के रूप में याद करता है।