Bihar में युवा महिलाओं की श्रम-बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate) केवल 8.8% रही है, जो पूरे भारत के औसत 21.4% की तुलना में बहुत कम है।
यह आंकड़ा बताता है कि राज्य में सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक बाधाएँ अभी भी व्यापक हैं।
► क्या है स्थिति?
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जुलाई-सितंबर 2025 के दौरान बिहार में 15-29 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में सक्रिय रूप से काम करने या काम खोजने वालों की दर मात्र 8.8% रही।
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यह दर श्रम बाजार में महिलाओं के कमजोर समावेश का संकेत देती है।
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इसके अलावा, राज्य में नकद हस्तांतरण योजनाएँ बढ़ी हैं, लेकिन दीर्घकालीन रोजगार वृद्धि प्रबल नहीं हुई।
► मुख्य कारण क्या हैं?
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सामाजिक रूढ़ियाँ व पारिवारिक दायित्व: ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को अक्सर घरेलू कामों, बच्चों की देखभाल व पारिवारिक जिम्मेदारियों में बाँधा जाता है।
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रोजगार के अवसरों की कमी: शिक्षित युवतियों के लिए स्थानीय स्तर पर पर्याप्त रोजगार नहीं है, जिससे ellas बाहर जाना मजबूरी बन जाती है।
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कौशल व प्रशिक्षण की कमी: आधुनिक नौकरी-बाजार की माँग के अनुरूप तैयारी कम है।
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योजनाओं का फोकस अक्सर तुरंत लाभ पर रहा, जबकि दीर्घकालीन संरचनात्मक बदलाव कम हुआ।
► शासन-नीति में क्या कहा जा रहा है?
राज्य सरकार ने अनेक श्रमिक एवं महिला कल्याण योजनाएँ चलाई हैं, लेकिन विश्लेषक कह रहे हैं कि अब नकद हस्तांतरण से आगे बढ़कर सामाजिक बदलाव व बाजार अनुकूल प्रशिक्षण की आवश्यकता है
उदाहरण के लिए, भले ही “हर घर को पानी”, शिक्षा-स्वास्थ्य योजनाएँ चल रही हों, लेकिन महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने-के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम व स्वरोजगार अवसर तीव्र गति से लागू करने होंगे।
► क्यों यह बहुत महत्वपूर्ण है?
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यदि राज्य की महिलाओं को श्रम-बाजार में शामिल किया जाए तो अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलेगी, घरेलू आय बढ़ेगी और सामाजिक विकास तेज होगा।
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बिहार जैसे राज्य के लिए, जहाँ युवा आबादी बड़ी है, महिलाओं की भागीदारी छूटी हुई संसाध्य है — इसे काम में लाना विकास की बड़ी राह है।
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महिला अर्थव्यवस्था में भागीदार बनें तो परिवार-समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा — शिक्षा, स्वास्थ्य और समृद्धि में सुधार होगा।
► आगे की दिशा
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ज़रूरी है कि सरकारी-निजी साझेदारी में कौशल केंद्र स्थापित हों जहाँ युवतियों को डिजिटल, तकनीकी व उद्यम-क्षमता आधारित प्रशिक्षण मिले।
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स्थानीय उद्योगों एवं स्वरोजगार को बढ़ावा देना होगा ताकि महिलाएं अपने इलाके में ही काम कर सकें।
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सामाजिक चेतना कार्यक्रम संचालित हों, जिससे पारिवारिक व सामाजिक बंधनों को चुनौती मिले और महिलाओं की भागीदारी बढ़ सके।
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योजनाओं का नियमित मूल्यांकन व परिणाम-मापन हो ताकि तय किया जा सके कि उनको वास्तविक अवसर मिल रहे हैं या नहीं।
निष्कर्ष
बिहार में महिलाओं की श्रम-बल भागीदारी सिर्फ 8.8% होना राज्य की विकास-यात्रा के लिए चेतावनी संकेत है। इसे सुधारना न सिर्फ सामाजिक न्याय का प्रश्न है बल्कि आर्थिक रणनीति की भी आवश्यकता है।
यदि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो राज्य विकास की गति खो सकता है। लेकिन यह अवसर भी है — बिहार अपनी ‘अदृश्य’ महिला श्रम-शक्ति को शामिल कर नवीन उड़ान ले सकता है।



