नई दिल्ली: 4 दिसंबर 2025 को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर ₹90.42 पर पहुँच गया — यह अब तक का सर्वकालिक नया निचला स्तर है।
क्यों गिरी रुपये की कीमत?
• इस गिरावट के पीछे मुख्य वजह है — विदेशी निवेश (FII) का लगातार बाहर जाना और पूंजी प्रवाह में कमी।
• इसके साथ ही, आयात-मांग और डॉलर-डिमांड बढ़ने से रुपये पर दबाव बढ़ा है — खासकर तेल, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी वस्तुओं के आयात से।
• साथ ही, Reserve Bank of India (RBI) ने अब रुपये को किसी “निरपेक्ष स्तर” पर बनाए रखने की नीति छोड़ दी है; अब वे सिर्फ अत्यधिक उतार-चढ़ाव रोकने के लिए कदम उठा रहे हैं।
आम आदमी और अर्थव्यवस्था पर असर
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जो चीज़ें डॉलर में आती हैं — जैसे कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, आयातित सामान — उनकी कीमत बढ़ सकती है, जिससे महंगाई तेज हो सकती है।
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यात्राओं, विदेश खर्च, विदेश पढ़ाई या डॉलर में दायर लोन वालों पर असर पड़ेगा — उनकी लागत बढ़ जाएगी।
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आयात पर निर्भर उद्योगों की लागत बढ़ सकती है; वहीं, निर्यातकों को थोड़ा लाभ हो सकता है क्योंकि रुपये कमजोर होने से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है।
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शेयर मार्केट और निवेशकों की धारणा पर असर पड़ा है — निवेशकों की बेच-तोड़ और अस्थिरता बढ़ने की संभावना अधिक है।
क्या उम्मीद की जा सकती है आगे?
विश्लेषकों का कहना है कि अगर विदेशी निवेश में बहाली नहीं हुई, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार व डॉलर-डिमांड स्थिर नहीं हुई, तो रुपये की कमजोरी जारी रह सकती है; कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि यह ₹91 तक जा सकता है।
लेकिन दूसरी ओर, अगर पूंजी प्रवाह सुधारा गया और मुद्रा बाजार में स्थिरता आई — तो धीरे-धीरे रुपये में सुधार भी हो सकता है।



