
जयपुर: हिंदी सिनेमा के महान हास्य कलाकार और चरित्र अभिनेता गोवर्धन असरानी का सोमवार को 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
वे पिछले पांच दिनों से मुंबई के जुहू स्थित आरोग्य निधि अस्पताल में भर्ती थे।
सोमवार शाम लगभग चार बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके निधन से भारतीय सिनेमा जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक जगत तक, सभी ने इस सदाबहार कलाकार को श्रद्धांजलि दी।
असरानी का अंतिम संस्कार मुंबई में हुआ
असरानी का अंतिम संस्कार सोमवार देर शाम मुंबई के सांताक्रूज श्मशान घाट पर किया गया।
परिवार के करीबी सूत्रों ने बताया कि वे पिछले कुछ महीनों से लंबी बीमारी से जूझ रहे थे।
उनके परिवार में पत्नी मंजू असरानी, एक बहन और एक भतीजा हैं। इस दंपति की कोई संतान नहीं थी।
निधन से कुछ घंटे पहले ही असरानी ने अपने सोशल मीडिया पर दिवाली की शुभकामनाएं दी थीं,
जिससे उनके प्रशंसक और भी भावुक हो गए हैं।
उनके भतीजे अशोक असरानी ने मीडिया को बताया,
“उन्होंने हमें हंसाया, सिखाया और अभिनय की ऊंचाइयों को छुआ। उनका जाना हमारे परिवार और सिनेमा जगत दोनों के लिए अपूरणीय क्षति है।”
कॉमेडी के पर्याय बन चुके थे असरानी
हिंदी सिनेमा के हास्य अभिनय में असरानी का योगदान अविस्मरणीय है।
‘शोले’ के जेलर के किरदार से लेकर ‘चुपके चुपके’, ‘राजा बाबू’, ‘आ अब लौट चलें’, ‘हलचल’, ‘भूल भुलैया’ जैसी फिल्मों में
उन्होंने अपनी टाइमिंग और सादगीपूर्ण हास्य से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई।
उनका नाम सुनते ही दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान आ जाती थी।
उन्होंने 50 से अधिक वर्षों के करियर में 350 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया और हिंदी सिनेमा को हंसी का एक नया आयाम दिया।
जयपुर से मुंबई तक: संघर्ष और सपनों का सफर
असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था।
उनका पूरा नाम गोवर्धन असरानी था।
वे एक मध्यमवर्गीय सिंधी परिवार से थे, जिनके पिता भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से जयपुर आकर बस गए थे और कालीन का कारोबार शुरू किया।
असरानी के बचपन से ही अभिनय के प्रति गहरा लगाव था, लेकिन पिता उन्हें व्यापार में लगाना चाहते थे।
उन्होंने जयपुर के स्कूलों में पढ़ाई की और राजस्थान विश्वविद्यालय के राजस्थान कॉलेज से स्नातक किया।
कॉलेज के दौरान वे विवेकानंद हॉस्टल में रहते थे।
राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने एक्स पर लिखा —
“जयपुर के बेटे गोवर्धन असरानी के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है। सिनेमा जगत में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।”
रेडियो आर्टिस्ट से थिएटर स्टार तक
फिल्मों में आने से पहले असरानी ने ऑल इंडिया रेडियो (AIR) के लिए बतौर रेडियो आर्टिस्ट काम किया।
जयपुर में रहते हुए उन्होंने थिएटर में सक्रिय भूमिका निभाई।
उनके दोस्तों ने उनके लिए नाटक ‘जूलियस सीज़र’ और ‘अब के मोय उबारो’ किए,
जिनकी कमाई से असरानी मुंबई पहुंचे।
उन्होंने बताया था —
“जब पहली बार मुंबई पहुंचा, तो एक महीने तक संगीतकार नौशाद साहब को ढूंढता रहा,
ताकि फिल्मों में काम मिल सके। लेकिन जब बात नहीं बनी, तो वापस जयपुर लौट आया।”
ऋषिकेश मुखर्जी ने दिखाई राह
1962 में असरानी दोबारा सपनों की नगरी मुंबई लौटे।
यहां उनकी मुलाकात ऋषिकेश मुखर्जी और किशोर साहू से हुई,
जिनके कहने पर उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में दाखिला लिया।
1966 में स्नातक होने के बाद उन्होंने गुजराती फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की।
इसके बाद उन्हें हिंदी फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ (1967) में काम मिला,
जिसमें बिश्वजीत, नैना साहू और हेलन जैसे सितारे थे।
उनका ब्रेकथ्रू रोल 1975 की फिल्म ‘शोले’ में आया,
जहां वे “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं!” वाले डायलॉग से घर-घर में पहचाने गए।
राजस्थान के नेताओं और बॉलीवुड का श्रद्धांजलि संदेश
राजस्थान के डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने कहा —
“प्रसिद्ध अभिनेता और हास्य कलाकार असरानी जी के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है।
उन्होंने पांच दशकों से अधिक समय तक दर्शकों को हंसाया और सोचने पर मजबूर किया।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।”
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी ट्वीट कर कहा —
“असरानी जी सिर्फ कलाकार नहीं थे, बल्कि हंसी के जरिए जीवन जीने की कला सिखाने वाले व्यक्ति थे। उनका जाना युगांतकारी है।”
बॉलीवुड के दिग्गज कलाकारों ने भी सोशल मीडिया पर असरानी को श्रद्धांजलि दी —
अमिताभ बच्चन ने लिखा,
“हमारे उद्योग ने एक सच्चा कलाकार खो दिया है। असरानी जी की हंसी हमेशा जिंदा रहेगी।”
कॉमेडी की नई परिभाषा देने वाले अभिनेता
असरानी सिर्फ एक कॉमेडियन नहीं थे — वे एक क्लासिकल अभिनेता थे।
उन्होंने अपने अभिनय से दिखाया कि कॉमेडी भी कला होती है,
जो दर्शकों के दिलों को छू सकती है।
वे अपने किरदारों में गहराई, टाइमिंग और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे।
उनकी एक्टिंग स्टाइल ने आने वाली पीढ़ियों — जॉनी लीवर, राजपाल यादव, परेश रावल और कपिल शर्मा — को भी प्रेरित किया।
असरानी के जीवन की कुछ प्रमुख फिल्में
वर्ष | फिल्म का नाम | भूमिका |
---|---|---|
1975 | शोले | जेलर |
1975 | चुपके चुपके | प्रोफेसर सुकेतु |
1984 | अब आयी बरसात | कॉमिक रोल |
1994 | राजा बाबू | नंदू |
1996 | हलचल | पुलिस अधिकारी |
2000 | हेरा फेरी | प्रिंसिपल |
2008 | भूल भुलैया | साधु बाबा |
एक युग का अंत
असरानी का जाना केवल एक अभिनेता का नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।
उनकी मुस्कान, उनकी आवाज़ और उनका अभिनय
हमेशा भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद किया जाएगा।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. असरानी का निधन कब हुआ?
A1. असरानी का निधन सोमवार, 21 अक्टूबर 2025 को मुंबई में हुआ।
Q2. असरानी का जन्म कहां हुआ था?
A2. उनका जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था।
Q3. असरानी की पहली फिल्म कौन सी थी?
A3. उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ (1967) थी।
Q4. असरानी को किन किरदारों के लिए याद किया जाता है?
A4. शोले के जेलर, चुपके चुपके के प्रोफेसर और राजा बाबू के हास्य किरदार सबसे लोकप्रिय हैं।
Q5. क्या असरानी के कोई बच्चे थे?
A5. नहीं, असरानी और उनकी पत्नी मंजू असरानी की कोई संतान नहीं थी।
Q6. क्या असरानी का संबंध जयपुर से था?
A6. हां, असरानी जयपुर के रहने वाले थे और उन्होंने यहीं से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी।
🔗 External Source: Times of India – Asrani Passes Away at 84