Home मनोरंजन आवाज़ की दुनिया के श्रोता मधुर गीत-संगीत:सुखमय जीवन का आधार

आवाज़ की दुनिया के श्रोता मधुर गीत-संगीत:सुखमय जीवन का आधार

7 second read
Comments Off on आवाज़ की दुनिया के श्रोता मधुर गीत-संगीत:सुखमय जीवन का आधार
0
332

 

आवाज़ की दुनिया के श्रोता

मधुर गीत-संगीत:सुखमय जीवन का आधार

स्रोत-प्रदीप कुमार नायक

स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
भारतीय रेडियों प्रसारण की संगठित शुरुआत 23 जुलाई 1927 को इंडियन ब्राड कॉस्टिंग कम्पनी के मुम्बई केन्द्र से हुई थी। 1930 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस माध्यम के महत्व को समझते हुए इसे अपने नियंत्रण में लेकर “इंडियन स्टेट ब्राड कॉस्टिंग सर्विस” का नाम दिया जो 1936 में ऑल इंडिया रेडियों के नाम से जाना जाने लगा।भारत में सर्व प्रथम 20 अगस्त 1927 को भारतीय रेडियों प्रसारण मुम्बई द्वारा श्रोताओं के फरमाईसी कार्यक्रम का प्रसारण किया गया।इसलिए उस दिन से श्रोता दिवस मनाया जाने लगा।
आज हिन्दुस्तान के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने तब इस एकमात्र सार्वजनिक सरकारी प्रसारण माध्यम का नामकरण “आकाशवाणी” कर दिया।धीरे-धीरे आकाशवाणी शब्द ही भारतीय रेडियों प्रसारण का पर्याय बन गया।इन आठ दशकों में रेडियों ने महानगर के आलीशान बंगलों से लेकर गाँवों की चौपालों,मेहनतकश के झोपड़ी,खेत में काम करते किसानों तथा व्यापारियों तक पहुँचने का सफ़र तय किया हैं।रिकार्डिंग तथा ब्राड कॉस्टिंग में डिजिटल तकनीक का उपयोग तथा “फोनइन” कार्यक्रमों के जरिए अधिक से अधिक श्रोताओं को अपने से जोड़ने के रेडियों के प्रयास सफ़ल हो रहें हैं।
नि:संदेह हमारा उद्देश्य एकजुट होकर श्रोताओं को एक नई दिशा प्रदान करना हैं तथा इसके साथ-साथ परस्पर बन्धुत्व की भावना,ज्ञान व मनोरंजन, चेतना,शांति,सदभावना, एकता की भावना व हमारी संस्कृति को कायम रखना हैं।गीत-संगीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।जिन्दगी कल्पना और यथार्थ की एक मिली-जुली प्रक्रिया हैं और हम सभी को हमेशा ही इसका एक अहम हिस्सा बनकर खुद को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता हैं।हम कह सकते हैं कि मधुर गीत-संगीत ही सुखमय जीवन का आधार हैं।श्रोता आकाशवाणी का दर्पण होता हैं।श्रोता जिस रुचि से आकाशवाणी के प्रोग्रामों को सुनते हैं और उन पर अपनी प्रतिक्रियाएं देते हैं उससे आकाशवाणी का मार्गदर्शन होता हैं।
कहां जाता हैं कि तानसेन जब तान छोड़ते थे तो पानी बरसने लगता था और दीपक जल उठता था।बैजू बाबरा के गाने पर रीझकर हिरण जंगल से आ जाता था।बताया जाता हैं कि भगवान श्री कृष्ण की मधुर मुरली की तान पर पशु-पंक्षी सूझ-बूझ खो बैठते थे।वीणा की राग पर नाग साँप रिझता हैं तो वीणा की राग पर कस्तूरी,मृग सील मछली की संगीत प्रियता तो विश्वविख्यात हैं।प्यार भरी बोली से रोता हुआ बच्चा भी चुप हो जाता हैं।गाने से रक्त संचार में वृद्धि होती हैं और शिराओं में नवजीवन का आभास मिलने लगता हैं तथा मानव शरीर विजातीय द्रव्यों से मुक्त हो जाता हैं।यहाँ तक की गायकों में हृदय रोग एवं ब्लड प्रेशर के रोग नहीं पाये जाते हैं।
संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती हैं।संगीत प्रधान ग्रंथ हैं।संगीत केवल मनोरंजन ही नहीं हैं बल्कि सृष्टि के हृदय को रोगात्मक सूत्र से जोड़ने का बंधन भी हैं।गाने के बारह राग होते हैं और प्रत्येक राग में किसी न किसी रोग को ठीक करने की ताकत हैं।इस प्रकार हम देखते हैं कि संगीत हमारें जीवन और प्रकृति के प्रसन्ता के लिए कितना अनिवार्य हैं।इस प्रकार हम देखते हैं कि संगीत हमारें जीवन और प्रकृति के प्रसन्ता के लिए कितना अनिवार्य हैं।संगीत की स्वर लहरियों की मधुर स्पर्श हमें शांति और अलौकिक आनन्द प्रदान करता हैं।सही अर्थ में कहें तो रेडियों से जुड़े व्यक्ति ही आवाज़ की दुनिया के असली श्रोता हैं।
लेखक – स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं चैनलों में अपनी योगदान दे रहें हैं।
मोबाइल – 8051650610

Load More Related Articles
Load More By Seemanchal Live
Load More In मनोरंजन
Comments are closed.

Check Also

पूर्णिया में 16 KG का मूर्ति बरामद, लोगों ने कहा-यह तो विष्णु भगवान हैं, अद्भुत मूर्ति देख सभी हैं दंग

पूर्णिया में 16 KG का मूर्ति बरामद, लोगों ने कहा-यह तो विष्णु भगवान हैं, अद्भुत मूर्ति देख…