
कटिहार: प्राचीन सभ्यता से लेकर आधुनिकता तक का ऐतिहासिक सफर
कटिहार बिहार राज्य के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित एक प्रमुख जिला है, जो अपनी भौगोलिक स्थिति, सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक विरासत के कारण विशेष महत्व रखता है। यह जिला आज न केवल एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र है, बल्कि रेलवे, कृषि, व्यापार, और शिक्षा में भी अग्रणी है। लेकिन इसका यह आधुनिक स्वरूप सदियों के ऐतिहासिक उतार-चढ़ाव और परिवर्तन का परिणाम है।
प्राचीन काल: वैदिक युग से गुप्त साम्राज्य तक
कटिहार क्षेत्र का इतिहास वैदिक काल से शुरू होता है। यह इलाका कभी विदेह महाजनपद का हिस्सा था। मिथिला (जनक की नगरी) और अंग प्रदेश इस क्षेत्र के समीपवर्ती थे, और कटिहार इसी सांस्कृतिक संगम क्षेत्र में आता था। यह क्षेत्र धार्मिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए जाना जाता था।
महावीर और बुद्ध जैसे महान विचारकों ने इस क्षेत्र से होकर यात्रा की थी। मौर्य काल (चंद्रगुप्त और अशोक के शासन) में यह क्षेत्र बौद्ध धर्म का केंद्र बना। अशोक द्वारा निर्मित स्तूपों और विहारों के अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह भूमि उस समय ज्ञान, शांति और धर्म का प्रसार करने वाली थी।
इसके बाद, गुप्त साम्राज्य (320–550 ई.) में यह क्षेत्र सांस्कृतिक उत्कर्ष के शिखर पर पहुंचा। गुप्त शासकों ने शिक्षा, साहित्य और विज्ञान को बढ़ावा दिया। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों से जुड़े छात्र संभवतः कटिहार और आस-पास के क्षेत्रों से भी आते रहे होंगे।
मध्यकालीन काल: पाल, सेन और मुस्लिम शासन
गुप्त वंश के पतन के बाद यह क्षेत्र पाल वंश के अधीन आया, जिन्होंने बौद्ध धर्म को संरक्षित किया। इसके बाद सेन वंश ने हिंदू धर्म को पुनः स्थापित किया। सेन वंश के पतन के बाद बख्तियार खिलजी के आक्रमण (12वीं शताब्दी) ने मुस्लिम शासन की शुरुआत की।
कटिहार क्षेत्र बाद में दिल्ली सल्तनत और बंगाल सल्तनत के अधीन रहा। इस दौर में इस्लामिक संस्कृति, वास्तुकला, और सूफी परंपरा का प्रसार हुआ। कई मस्जिदें, दरगाहें और मदरसे इस काल में बने। यह क्षेत्र व्यापारिक मार्गों पर होने के कारण रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण बना रहा।
ब्रिटिश काल: व्यापार, रेलवे और क्रांति
1757 की प्लासी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने बंगाल पर नियंत्रण कर लिया, जिसमें कटिहार भी शामिल था। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कटिहार रेलवे नेटवर्क का हिस्सा बना, जिससे यह पूर्वोत्तर भारत का प्रमुख रेलवे जंक्शन बन गया।
कटिहार जंक्शन के ज़रिए बंगाल और असम को जोड़ने वाला रेलवे मार्ग विकसित हुआ, जिससे जूट, चाय और केले जैसी फसलों का व्यापार बढ़ा। अंग्रेजों ने राजस्व प्रणाली लागू की और किसानों पर कर का बोझ डाला, जिससे कई बार विद्रोह भी हुए।
कटिहार के कई स्थानीय नेता और ग्रामीण भारत छोड़ो आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन और असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध की कई घटनाएं दर्ज हैं।
कटिहार नाम की उत्पत्ति
‘कटिहार’ शब्द की उत्पत्ति को लेकर कई धारणाएं हैं। एक मत के अनुसार यह नाम “कटिहा नदी” से आया है, जो कभी इस क्षेत्र से होकर बहती थी। एक अन्य मान्यता है कि ‘कटि’ (कमर) और ‘हार’ (माला) से मिलकर यह नाम बना, जो स्थानीय भाषा से प्रेरित हो सकता है। हालांकि इस पर एकमत ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।
स्वतंत्रता के बाद: जिला निर्माण और विकास
2 अक्टूबर 1973 को कटिहार को पूर्णिया जिले से अलग कर एक स्वतंत्र जिला घोषित किया गया। यह ऐतिहासिक निर्णय इस क्षेत्र की जनसंख्या, व्यापारिक महत्व और भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिया गया था। इसके बाद से कटिहार का विकास एक प्रशासनिक और शैक्षणिक केंद्र के रूप में होने लगा।
वर्तमान कटिहार: एक विकसित जिला
आज का कटिहार बिहार का एक महत्वपूर्ण जिला है। इसकी सीमाएं पश्चिम बंगाल और नेपाल से सटी हुई हैं। यह सामाजिक, भाषाई और धार्मिक विविधता का उदाहरण है। यहां हिंदी, उर्दू, मैथिली, बंगाली और अंगिका जैसी भाषाएं बोली जाती हैं।
प्रमुख क्षेत्र:
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कृषि: धान, मक्का, गन्ना, जूट, केला जैसी फसलें।
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शिक्षा: कटिहार मेडिकल कॉलेज, डीएस कॉलेज, लॉ कॉलेज, और कई सरकारी व प्राइवेट संस्थान।
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रेलवे: कटिहार जंक्शन पूर्वोत्तर भारत के सबसे व्यस्त जंक्शनों में से एक है।
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व्यापार: फल, सब्जी, कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा मंडी केंद्र।
सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल:
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कन्हाईनाथ मंदिर (मनिहारी)
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मालगुड़ी बाबा की दरगाह
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काली मंदिर, बरारी
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मनिहारी घाट – गंगा किनारे स्थित प्रसिद्ध घाट, धार्मिक यात्रा का प्रमुख स्थान।
प्रमुख समस्याएं:
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हर वर्ष बाढ़ की समस्या (विशेष रूप से कोसी और गंगा से प्रभावित)
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बेरोजगारी और पलायन
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शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता