
पटना, 15 अगस्त – भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में जयप्रकाश नारायण का नाम एक ऐसे नेता के रूप में दर्ज है, जिन्होंने न केवल आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया, बल्कि स्वतंत्र भारत में भी भ्रष्टाचार, अन्याय और तानाशाही के खिलाफ निर्णायक संघर्ष छेड़ा। ‘लोकनायक’ के नाम से प्रसिद्ध जेपी का जीवन संघर्ष, सादगी और सत्यनिष्ठा की मिसाल है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सिताबदियारा में जन्मे जयप्रकाश नारायण का बचपन आर्थिक कठिनाइयों में बीता। उन्होंने स्थानीय विद्यालय से पढ़ाई की और उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। अमेरिका में रहते हुए उन्होंने साम्यवाद, समाजवाद और गांधीवाद जैसे विचारों का गहन अध्ययन किया।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
1929 में भारत लौटकर वे महात्मा गांधी से जुड़े और 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1934 में उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना में अहम योगदान दिया, जिसका उद्देश्य कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारधारा को बढ़ावा देना था।
वे कई बार जेल गए — 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने भूमिगत रहकर आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व किया।
आज़ादी के बाद की यात्रा
स्वतंत्रता मिलने के बाद जेपी ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी और विनोबा भावे के ‘सर्वोदया आंदोलन’ से जुड़कर ग्रामीण विकास, भूदान और ग्राम स्वराज की दिशा में काम किया। उनका मानना था कि सच्चा लोकतंत्र गांव से शुरू होता है।
1974 का छात्र आंदोलन और ‘संपूर्ण क्रांति’
1970 के दशक की शुरुआत में देश में भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोज़गारी के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था। 1974 में बिहार में छात्रों ने आंदोलन शुरू किया, जिसे जयप्रकाश नारायण ने अपना नेतृत्व दिया। उन्होंने पटना के गांधी मैदान से ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया।
इस क्रांति का उद्देश्य केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और शिक्षा में आमूल परिवर्तन था।
आपातकाल और लोकतंत्र की बहाली
जेपी के नेतृत्व में बढ़ते जनांदोलन से घबराकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल लागू किया। प्रेस की आज़ादी खत्म कर दी गई, विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया और जनता के अधिकार सीमित कर दिए गए।
जेपी को भी जेल भेजा गया, जहां उनकी तबीयत बिगड़ गई। स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद उन्होंने लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष जारी रखा।
विरासत और सम्मान
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जनता ने उन्हें ‘लोकनायक’ की उपाधि दी।
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1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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आज भी उनके विचार लोकतांत्रिक मूल्यों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रेरणा देते हैं।
जयप्रकाश नारायण के कुछ प्रमुख विचार
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“संपूर्ण क्रांति केवल राजनीतिक क्रांति नहीं है, यह जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव की पुकार है।”
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“राजनीति का उद्देश्य सत्ता नहीं, सेवा होना चाहिए।”
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“जनता ही लोकतंत्र की असली मालिक है।”