
1961 में बिहार की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया। श्री कृष्ण सिंह और दीपू नारायण सिंह के बाद विनोदानंद झा राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल 1961 से 1963 तक चला। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और बिहार की राजनीति को स्थिरता देने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
शुरुआती जीवन
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जन्म: दरभंगा ज़िला, बिहार
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शिक्षा: उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद राजनीति में सक्रिय हुए।
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बचपन से ही सामाजिक सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में रुचि थी।
राजनीतिक करियर
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विनोदानंद झा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और स्वतंत्रता के बाद सक्रिय राजनीति में उतरे।
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वे बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए और कांग्रेस संगठन में उनकी मजबूत पकड़ रही।
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वे एक शांत स्वभाव और प्रशासनिक क्षमता वाले नेता के रूप में पहचाने जाते थे।
मुख्यमंत्री कार्यकाल (1961–1963)
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उन्होंने 1961 में दीपू नारायण सिंह के बाद मुख्यमंत्री पद संभाला।
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उनका कार्यकाल दो वर्षों तक चला और इस दौरान उन्होंने शिक्षा, प्रशासन और ग्रामीण विकास पर काम किया।
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उन्होंने बिहार की राजनीति में स्थिरता बनाए रखने और कांग्रेस पार्टी की पकड़ मजबूत करने में योगदान दिया।
मुख्य योगदान
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शिक्षा सुधार: विद्यालयों और कॉलेजों के विस्तार पर ध्यान दिया।
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प्रशासनिक सुधार: नौकरशाही को अधिक जवाबदेह और जिम्मेदार बनाने की कोशिश।
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कृषि और ग्रामीण विकास: किसानों के लिए योजनाएँ शुरू कीं और सिंचाई पर जोर दिया।
चुनौतियाँ
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उनके कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी के भीतर गुटबाज़ी और नेतृत्व संघर्ष गहराता गया।
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बिहार में राजनीतिक अस्थिरता की शुरुआत भी इसी समय मानी जाती है।
विरासत
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भले ही उनका कार्यकाल छोटा था, लेकिन उन्होंने राज्य को स्थिर रखने और विकास की दिशा में कदम उठाए।
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उन्हें बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
FAQs: विनोदानंद झा
Q1. विनोदानंद झा कौन थे?
👉 वे बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री थे।
Q2. उन्होंने किस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया?
👉 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।
Q3. उनका कार्यकाल कब तक रहा?
👉 1961 से 1963 तक।
Q4. वे किन मुद्दों पर काम करते थे?
👉 शिक्षा, ग्रामीण विकास और प्रशासनिक सुधार।
Q5. वे कहाँ से थे?
👉 दरभंगा, बिहार।
निष्कर्ष
विनोदानंद झा का कार्यकाल बिहार की राजनीति में स्थिरता और विकास के लिए जाना जाता है।
हालांकि वे बहुत लंबे समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहे, लेकिन उनकी नीतियाँ और नेतृत्व शैली ने आने वाले नेताओं को प्रभावित किया।
वे बिहार के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।