
मानवता की असली पहचान: अर्चना देव की मूक प्राणियों के प्रति निस्वार्थ सेवा
विश्व पशु दिवस विशेष रिपोर्ट — जब संवेदना और प्रेम ने बनाई एक शिक्षक की मिसाल
आज जब दुनिया तेज़ी से आगे बढ़ रही है और इंसान अपनी सुविधा, सफलता और स्वार्थ के जाल में उलझा हुआ है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मूक प्राणियों के प्रति करुणा और संवेदना की मिसाल पेश कर रहे हैं।
ऐसी ही एक शख्सियत हैं — अर्चना देव, जो न सिर्फ एक राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका हैं, बल्कि समाज में पशु-प्रेम और मानवता की जीवंत पहचान बन चुकी हैं।
पशु प्रेम से जुड़ी एक प्रेरक कहानी
विश्व पशु दिवस के अवसर पर जब पूरी दुनिया इंसान और पशु के रिश्ते को याद कर रही थी, तब पूर्णिया की यह शिक्षिका अपनी निष्ठा और ममता से सभी के दिलों को छू रही थीं।
रिटायरमेंट के बाद भी अर्चना देव का दिन इस सोच से शुरू होता है —
“भूखे पेट कोई भी जीव चैन से नहीं सो सकता, चाहे वह इंसान हो या जानवर।”
हर सुबह वे अपने घर से निकलती हैं, हाथों में रोटी और दाना लिए — और सड़क किनारे घूमते कुत्तों व बिल्ली के बच्चों को खाना खिलाती हैं।
सेवा नहीं, परिवार जैसा अपनापन
अर्चना देव कहती हैं —
“पशु केवल जीवन का हिस्सा नहीं, वे परिवार का अभिन्न अंग हैं। उनका सुख-दुख हमारी जिम्मेदारी है।”
उनके घर में कुत्ते और बिल्लियाँ केवल “पालतू” नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह रहते हैं।
हर छोटी बीमारी, हर असुविधा — उनके लिए उतनी ही चिंता का विषय होती है, जितनी किसी अपने के लिए।
निस्वार्थ सेवा की असली मिसाल
यह सेवा केवल करुणा नहीं, बल्कि मानवता का सर्वोच्च उदाहरण है।
अर्चना देव का मानना है —
“जब हम मूक प्राणियों के दर्द को समझने लगते हैं, तभी समाज में असली मानवता जन्म लेती है।”
उनकी यह भावना केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में दिखती है।
बरसात हो या ठंड, वे रोज़ाना अपने इलाके के दर्जनों जानवरों को भोजन और सुरक्षा देती हैं।
एक शिक्षिका से ‘जीवन की शिक्षक’ तक का सफर
कई वर्षों तक उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के भविष्य को संवारने का काम किया।
लेकिन रिटायरमेंट के बाद उन्होंने एक नया अध्याय शुरू किया —
अब वे “जीवन की शिक्षिका” बन चुकी हैं, जो समाज को करुणा, प्रेम और संवेदना का पाठ पढ़ा रही हैं।
प्रेरणा का संदेश
अर्चना देव की कहानी हमें यह सिखाती है कि मानवता सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं, बल्कि हर जीव के प्रति दया का नाम है।
वे यह साबित करती हैं कि —
“मानव होने का अर्थ केवल बोलने या सोचने की क्षमता नहीं, बल्कि दूसरों के दर्द को महसूस करने की शक्ति है।”
निष्कर्ष: करुणा ही सबसे बड़ा धर्म
इस विश्व पशु दिवस पर अर्चना देव जैसी शख्सियतें हमें याद दिलाती हैं कि समाज की असली ताकत तकनीक या धन नहीं, बल्कि दया और संवेदना है।
उनकी तरह हर व्यक्ति अगर दिन का एक पल भी मूक प्राणियों के लिए निकाले, तो दुनिया सच में रहने लायक बेहतर जगह बन सकती है।
लेखिका: सीमांच लाइव विशेष डेस्क
स्थान: पूर्णिया, बिहार