
शहीद दिवस पर सजाया गया मेला
रूपसपुर गांव चंदवा जहां खेली गई थी खून की होली। वहां सजाया गया मेला। यहां लाशों के ढेर पर मातम नहीं बल्कि हर वर्ष मेला लगाया जाता है। बीते 22 नवंबर 1971 को रूपसपुर गांव में खून की होली खेली गई थी । इस खूनी खेल में 14 आदिवासियों का कत्लगाह रूपसपुर गांव बन गया था । यह दिन क्षेत्रवासियों के लिए अविस्मरणीय अध्याय बनकर रह गया है। वहीं 22 नवंबर के दिन आदिवासी समाज के लोगों ने यहां मेला सजाया। इस अवसर पर जश्न के माहौल में आदिवासी समुदाय जहां अपने बिछुडे साथियों को याद किया वही आदिवासी युवक एवं युवतियां मेले के बहाने अपने जीवन साथी तलाश करते रहे। ज्ञात हो कि धमदाहा प्रखंड अन्तर्गत मीरगंज थाना क्षेत्र में रूपसपुर गांव के आदिवासी समुदाय इलाके के जमींदारों की लगभग 300 एकड़ जमीन पर बटाई दारी कर जीवन गुजर-बसर करते थे। कुछ वर्षों तक बटाईदारी करने के बाद भूमि सर्वे का समय आ गया। परिणामस्वरूप आदिवासियों ने जमीन पर कब्जा जमा लिया। जिससे जमींदारों एवं आदिवासियों के बीच जंग शुरू हो गई। गांव में आग लगाई गई सैकड़ों चक्र गोलियां एवं तीर धनुष के प्रहार से खून की नदियां बह गई। उसमें चौदह आदिवासी मारे गए थे। भोला पासवान शास्त्री की सरकार में मृत व्यक्तियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी दी । इस खूनी खेल में मारे गए लोगों की याद में आदिवासियों ने शहीद स्मारक बनवाया। जिसका उद्घाटन झामुमो नेता शिबू सोरेन द्वारा 1981 ईस्वी में किया गया। उस समय से मेला को यादगार बनाने का सिलसिला हर वर्ष बदस्तूर जारी है । मेले को लेकर आदिवासी उत्साहित हैं। मेला समिति के सदस्य सहित ग्रामीणों ने बताया इस मौके पर पारंपरिक खेल तीरंदाजी में तीर कमान का करतब और फुटबॉल में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाने के लिए पहुंचेते हैं। जबकि रंगारंग कार्यक्रम में आदिवासी संस्कृति की खूबसूरती देखी जाती है। इस मेले में दूरदराज से यहां आदिवासी समुदाय के लोग पहुंचते हैं और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
स्रोत-हिन्दुस्तान