अयोध्या सुनवाई का 22वां दिन: ‘कब्जा कर मालिकाना हक नहीं मांगा जा सकता’
नई दिल्ली उच्चतम न्यायालय में रामजन्मभूमि विवाद की सुनवाई अंतिम चरण में पहुंच गई है। मुस्लिम पक्ष की ओर से अधिवक्ता राजीव धवन ने अपनी दलीलें गुरुवार को पूरी कर लीं।
‘लिमिटेशन एक्ट’ का हवाला दिया : मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ के समक्ष धवन ने कहा, ‘हिंदू पक्ष जबरन घुसकर कब्जा करने के बाद स्थल पर मालिकाना हक मांग रहा है। क्या गैरकानूनी कार्य करने के बाद प्रतिकूल कब्जे का फायदा लिया जा सकता है?’ उन्होंने कहा कि लिमिटेशन एक्ट (मुकदमा दायर करने की समयसीमा संबंधी कानून) की धारा 65 और 142 के तहत प्रतिकूल कब्जा तभी होगा, जब इसमें कब्जे का एनिमस (इरादा) और कॉर्पस (वस्तु) हो तथा ये दोनों संयुक्त रूप से मौजूद हों। इसमें संवेदना और तंगियों को कोई तवज्जो नहीं दी जाती।
प्रतिकूल कब्जा बलपूर्वक नहीं होता : धवन ने कहा, ‘हमने 1934 में उन्हें पूजा करने की अनुमति दी तो इसका मतलब यह नहीं है वे स्थल पर अधिकार जताने लगेंगे। प्रतिकूल कब्जे के लिए जरूरी है कि यह बलपूर्वक न हो। बाद में मजिस्ट्रेट का आदेश आ गया कि पूजा जारी रखी जाए। यह आदेश एक लगातार जारी रहने वाली गलती थी, जिसके आधार पर अब कब्जा मांगा जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि कब्जे का एकमात्र उद्देश्य लिमिटेशन एक्ट से बचना था और कुछ नहीं। कब्जा (अंदरूनी आंगन में प्रतिमा रखना) दिसंबर 1949 में लिया गया और 1959 में प्रतिकूल कब्जे के आधार पर टाइटल लेने के लिए केस दायर कर दिया गया।
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