
बिहार चुनाव को लेकर क्या है AIMIM की तैयारी, ओवैसी किसका बिगाड़ सकते हैं खेल?
AIMIM Bihar Election 2025: असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम इस बार बिहार चुनाव में 50 सीटों पर लड़ने की योजना बना रही है। पार्टी ने दो सीटों पर उम्मीदवारों का भी ऐलान कर दिया है। आइए जानते हैं बिहार चुनाव को लेकर क्या है AIMIM की रणनीति?
AIMIM की प्रमुख रणनीतियाँ:
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50 सीटों पर लड़ने की योजना:
पिछली बार 18 सीटों पर लड़ने वाली AIMIM इस बार अपना दायरा बढ़ाकर 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। इसका सीधा संकेत है कि पार्टी राज्य में अपने पांव और मजबूत करने की कोशिश में है। -
सीमांचल पर फोकस:
किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया जैसे जिलों में AIMIM की मजबूत पकड़ रही है। 2020 में 14 में से 5 सीटें इन्हीं जिलों से जीती थीं। अब मगध और मिथिलांचल की ओर भी रुख कर रही है। -
मजबूत उम्मीदवारों पर दांव:
तौसीफ आलम (4 बार विधायक) को बहादुरगंज से टिकट और ढाका सीट से राणा रंजीत सिंह के नाम की घोषणा – यह दिखाता है कि AIMIM जातीय-सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर चुनावी बिसात बिछा रही है।
गठबंधन की संभावना और असर:
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महागठबंधन में शामिल होने की चर्चा:
अगर AIMIM महागठबंधन (RJD+Congress+Left) में शामिल होती है, तो मुस्लिम वोटों का बिखराव रोका जा सकता है और एनडीए को सीधा नुकसान हो सकता है। -
अकेले लड़ने की स्थिति में:
AIMIM मुस्लिम वोटों में सेंध लगाएगी, जिससे RJD को नुकसान और NDA को अप्रत्यक्ष फायदा हो सकता है, खासकर सीमांचल की सीटों पर।
पिछली बार की स्थिति (2020):
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AIMIM ने 18 में से 5 सीटें जीतीं।
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13 सीटों पर RJD को भारी नुकसान पहुंचाया।
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5 में से 4 विधायक बाद में RJD में शामिल हो गए।
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वर्तमान में सिर्फ अख्तरुल ईमान (अमौर से) पार्टी में बचे हैं।
किसका बिगाड़ सकती है AIMIM खेल?
स्थिति | प्रभावित दल | संभावित असर |
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AIMIM अकेले लड़े | RJD | मुस्लिम वोट बंटेंगे, महागठबंधन को नुकसान |
AIMIM गठबंधन में शामिल हो | NDA | सीमांचल में सीधा नुकसान, खासकर BJP को |
सीमांचल से बाहर भी लड़े | जन सुराज, BSP, Independents | मुस्लिम+पिछड़ा समीकरण प्रभावित |
राजनीतिक विश्लेषण:
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RJD के लिए सबसे बड़ा खतरा AIMIM है, अगर वह गठबंधन से बाहर रहती है।
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NDA को सीमांचल में आराम की स्थिति मिल सकती है अगर AIMIM मुस्लिम वोट काटती है।
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जन सुराज जैसे नए दलों के लिए AIMIM चुनौती हो सकती है, खासकर मुस्लिम-युवा वोटर खींचने में।
निष्कर्ष:
AIMIM का प्रदर्शन भले ही सीमित रहे, लेकिन यह चुनावी नतीजों में “ट्रिगर” का काम कर सकती है। ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोटों में बंटवारे के ज़रिए बड़े गठबंधनों की संभावनाओं को सीधे प्रभावित कर सकती है। अगर AIMIM गठबंधन से बाहर रही, तो यह महागठबंधन के लिए “Silent Saboteur” साबित हो सकती है।