
भारत और अमेरिका ने अपनी दशकों पुरानी अंतरिक्ष साझेदारी को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान दोनों देशों के अधिकारियों, वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष यात्रियों ने इस साझेदारी को “भविष्य की अंतरिक्ष खोज” के लिए निर्णायक बताया।
इस अवसर पर भारत के राजदूत और अमेरिका की नासा (NASA) तथा अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि अब सहयोग केवल तकनीकी आदान-प्रदान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि चंद्रमा और मंगल मिशनों में संयुक्त प्रयासों को और गति दी जाएगी।
दशकों पुराना रिश्ता, नई उड़ान
भारत और अमेरिका का अंतरिक्ष सहयोग 1960 के दशक में शुरू हुआ था। प्रारंभ में यह साझेदारी उपग्रह तकनीक, मौसम निगरानी और अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान तक सीमित थी। 2008 में चंद्रयान-1 मिशन के दौरान नासा के उपकरणों ने चंद्रमा पर पानी की खोज की, जिसने इस सहयोग को एक नई पहचान दी।
हाल ही में चंद्रयान-3 की सफलता और अमेरिका के आर्टेमिस (Artemis) प्रोग्राम के साथ भारत की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों देश अब एक-दूसरे को वैश्विक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में रणनीतिक भागीदार मानते हैं।
चंद्रमा और मंगल मिशन पर साझा नजर
भारतीय दूतावास के कार्यक्रम में यह रेखांकित किया गया कि:
-
भारत की भविष्य की गगनयान मिशन में अमेरिका तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
-
अमेरिका के आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत, भारतीय वैज्ञानिक और उद्योग जगत भी सहयोग करेंगे, जिससे अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर उतरने की तैयारी करेंगे।
-
मंगल मिशन (Mars Exploration) के लिए डेटा साझा करने और संयुक्त प्रयोगशालाओं के विकास पर भी सहमति बनी है।
नासा के अधिकारियों ने कहा कि भारत की लागत प्रभावी तकनीक और अमेरिका की हाई-एंड रिसर्च क्षमताओं का मेल, आने वाले दशकों में मानव जाति की अंतरिक्ष खोज की दिशा तय करेगा।
भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों की मौजूदगी
इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि इसमें भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने साझा अनुभवों के जरिए बताया कि कैसे भारत और अमेरिका की साझेदारी केवल वैज्ञानिक स्तर तक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानव स्तर पर भी मजबूत हो रही है।
भारतीय दूतावास ने कहा कि आने वाले समय में भारत-अमेरिका संयुक्त रूप से युवा वैज्ञानिकों और छात्रों के लिए स्पेस रिसर्च एक्सचेंज प्रोग्राम भी शुरू करेंगे, जिससे नई पीढ़ी अंतरिक्ष अनुसंधान में योगदान दे सकेगी।
वैश्विक महत्व और रणनीतिक पहलू
भारत-अमेरिका का यह सहयोग सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह साझेदारी भूराजनीतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। अंतरिक्ष तकनीक अब राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रगति दोनों के लिए अहम हो चुकी है। चीन जैसे देशों की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा को देखते हुए भारत और अमेरिका का यह सहयोग वैश्विक संतुलन बनाने में भी मदद करेगा।
निष्कर्ष
भारत और अमेरिका की यह नई अंतरिक्ष साझेदारी दर्शाती है कि दोनों देश केवल वर्तमान मिशनों पर नहीं, बल्कि आने वाले दशकों में चंद्रमा पर स्थायी उपस्थिति और मंगल ग्रह की खोज जैसे बड़े लक्ष्यों को लेकर भी गंभीर हैं।
भारतीय दूतावास का यह कार्यक्रम इस बात का प्रमाण है कि भारत अब केवल अंतरिक्ष तकनीक का अनुयायी नहीं, बल्कि एक वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति बन चुका है और अमेरिका उसका सबसे बड़ा सहयोगी है।