
पटना से बड़ी खबर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासत में एक नया मोड़ आया है। किन्नर कल्याण बोर्ड ने न केवल सरकार को ₹100 करोड़ का लीगल नोटिस भेजा है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह मांग भी की है कि चुनाव में किन्नर समुदाय को कम से कम 5 सीटों पर टिकट दिया जाए। बोर्ड के सदस्य डॉक्टर राजन सिंह ने यहां तक कहा है कि जिस तरह देश में राष्ट्रपति आदिवासी समुदाय से और प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से हैं, उसी तरह बिहार में ट्रांसजेंडर मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं।
100 करोड़ का लीगल नोटिस
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बिहार राज्य किन्नर कल्याण बोर्ड के सदस्य डॉ. राजन सिंह ने सरकार को ₹100 करोड़ का लीगल नोटिस भेजा है।
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आरोप है कि बोर्ड का बजट 350 करोड़ रुपए का है, लेकिन यह पैसा “कागजों पर” खर्च दिखाया जाता है।
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उनका कहना है कि “किन्नरों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर कोई काम नहीं हो रहा है। पैसा किसकी जेब में जा रहा है, यह समझने की जरूरत है।”
राजन सिंह के बड़े बयान
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“हमारा वोट सबको चाहिए, लेकिन टिकट कोई नहीं देता।”
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“5 सीटें किन्नरों को मिलनी चाहिए। अगर टिकट मिला तो हम जीतकर दिखाएंगे।”
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“आज भी किन्नरों के साथ सरकारी दफ्तरों में भेदभाव होता है।”
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“प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन एक्ट पास किया, अब टिकट भी देना चाहिए।”
किन्नर कल्याण बोर्ड की स्थिति
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बिहार में बोर्ड बना लेकिन अभी तक ऑफिस तक नहीं मिला।
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कोई कर्मचारी नियुक्त नहीं है।
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योजनाओं का ज़मीनी असर नदारद है।
बिहार में किन्नरों की आबादी
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अनुमानित आबादी: 5 लाख से अधिक
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राजन सिंह का दावा: “अगर सर्वे सही से हो तो 20 विधायक तक किन्नर समाज से बन सकते हैं।”
राजनीति और प्रतिनिधित्व
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अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने बिहार में किसी किन्नर उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया।
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महिला, युवा, छात्र और जाति आधारित मोर्चे हैं, लेकिन “किन्नर मोर्चा” कहीं नहीं।
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किन्नर समुदाय कहता है कि “हम आशीर्वाद देते हैं तो सबको अच्छा लगता है, लेकिन राजनीति में जगह देने की बात आती है तो सब पीछे हट जाते हैं।”
क्या है किन्नर कल्याण बोर्ड?
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उद्देश्य: शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक न्याय से जोड़ना।
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कार्यप्रणाली: सरकारी और गैर-सरकारी सदस्य मिलकर योजनाएं बनाते हैं।
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चुनौतियां:
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शिक्षा और छात्रवृत्ति योजनाओं में शामिल न होना
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स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
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सम्मानजनक रोजगार का न मिलना
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समाज में भेदभाव और हिंसा
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राजनीतिक असर
चुनाव से पहले किन्नर समुदाय की यह मांग बड़े दलों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है। अगर कोई दल किन्नरों को टिकट देता है तो यह वोट समीकरण पर बड़ा असर डाल सकता है।