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जातीय जनगणना: जानें बिहार चुनाव से पहले PM मोदी के ट्रंप कार्ड के क्या मायने?

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जातीय जनगणना: जानें बिहार चुनाव से पहले PM मोदी के ट्रंप कार्ड के क्या मायने?

पीएम मोदी ने बिहार चुनाव से पहले जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में यूपी चुनाव से पहले इसके आंकड़े सामने आ सकते हैं। ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्ष के पास अब कोई मुद्दा नहीं बचा है। क्या बीजेपी को इस फैसले से बिहार चुनाव में लाभ मिलेगा?

देश में जातीय आरक्षण को लेकर मोदी सरकार ने बुधवार को कैबिनेट मीटिंग में बड़ा फैसला किया। मोदी सरकार ने जातीय आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष के गुब्बारे की हवा निकाल दी। सरकार ने आगामी जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना कराने का फैसला किया है। मोदी सरकार ने विपक्षी दलों के सियासी तरकश से एक और तीर निकाल लिया है। विपक्ष के तनाम बड़े नेता राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, शरद पवार से उसका मुद्दा छीन लिया है। पिछले कुछ समय से विपक्ष का एक ही नारा है जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी इसके लिए सभी नेता जातीय जनगणना को पहली सीढ़ी बताते आए हैं। इस फैसले के यूं तो हर राज्य में अलग-अलग प्रभाव है लेकिन यूपी और बिहार में इसका सर्वाधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इसकी बड़ी वजह ओबीसी वोट बैंक। ऐसे में आइये जानते हैं इस फैसले के क्या मायने है?

भाजपा ने विपक्ष को मुद्दाविहीन बनाया

यूपी में अखिलेश यादव और राहुल गांधी पिछले काफी समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव भी बिहार में जातीय जनगणना को लेकर लामबंद है। बिहार में जब आरजेडी और जेडीयू की सरकार थी उस समय सीएम नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला किया था। इसके बाद जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आए और उसी के आधार पर जातियों का आरक्षण बढ़ाया गया। हालांकि बिहार सरकार हाईकोर्ट में आरक्षण की लड़ाई हार गई। अगर ऐसा ही सुप्रीम कोर्ट भी करता है तो सवाल यह है कि जातीय जनगणना आखिर जनता के लिए करवाई जा रही है या राजनीतिक दल अपनी सियासी रोटियां सेंकने के लिए इसको एक टूल के तौर पर अगले कुछ सालों तक इस्तेमाल करेंगे।

कांग्रेस ने जारी नहीं किए आंकड़े

दरअसल सामाजिक सर्वेक्षण तो कांग्रेस की सरकार के दौरान 2011 में हुआ था लेकिन उसके आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ऐसे में राहुल गांधी पिछले कुछ समय से इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर दबाव बना रहे थे। अब बीजेपी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर दबाव बनाएगी कि उसने सामाजिक सर्वेक्षण के आंकड़े क्यों प्रकाशित नहीं किए। इसके अलावा कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने भी जातीय सर्वे करवाया था लेकिन उन्होंने भी अपने आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।

इस फैसले का व्यापक प्रभाव क्या?

सरकार ने विपक्ष के पास से मुद्दा छीन लिया है। अब सरकार आगामी चुनाव में इस मुद्दे को भुनाएगी। ऐसे में सरकार इसका क्रेडिट लेगी। इससे पहले बीजेपी के लिए यह मुद्दा शादी वाले लड्डू की तरह था यानी सरकार जातीय जनगणना कराना भी चाहती थी लेकिन आंकड़े सामने आने के बाद जातीय असंतोष बढ़ने का डर सरकार के मन में है।

2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इसकी वजह ओबीसी और दलित वोट बैंक का खिसकना और कुछ तात्कालिक कारण थे। अब यूपी- बिहार में चुनाव से पहले बीजेपी ने विपक्ष के इस मुद्दे की हवा निकालने का काम किया है। अब भाजपा आगामी चुनाव में इसको बड़ा मुद्दा बनाएगी और भुनाएगी।

कोटे में कोटा सिस्टम से क्या होगा?

इस फैसले के बाद अब एक बड़ी समस्या आरक्षण की 50 प्रतिशत लिमिट है। जातीय जनगणना के बाद ओबीसी में छोटी जातियों का प्रतिशत बढ़ सकता है। ऐसे में सरकार कोटे में कोटा का फैसला लागू कर सकती है। ऐसा होता है बड़ी जातियां जिनका जनाधार ज्यादा है वे सरकार से नाराज हो सकती है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है। ऐसे में अगर कोटे में कोटा सिस्टम से बात नहीं बनी तो क्या आरक्षण की सीमा को बढ़ाया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो जातीय आरक्षण का यह पेंच सुप्रीम कोर्ट में फंस जाएगा।

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