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नए मंत्रिमंडल में सिर्फ 1 मुस्लिम और 3 महिलाएँ, बिहार की नई NDA सरकार में प्रतिनिधित्व पर उठा सवाल

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पटना: बिहार में नई NDA सरकार के शपथ ग्रहण के बाद मंत्रिमंडल की सामाजिक और जातीय संरचना पर चर्चा तेज हो गई है।
नीतीश कुमार की कैबिनेट में इस बार सिर्फ 1 मुस्लिम और केवल 3 महिला मंत्री शामिल हैं।
विशेषज्ञों और विपक्ष का कहना है कि राज्य की जनसंख्या के अनुपात में यह प्रतिनिधित्व “बहुत कम” है।

नई कैबिनेट की प्रमुख जानकारी

नीतीश कुमार की अगुवाई में बनी नई NDA सरकार में कुल 26 मंत्री हैं। इनमें:

  • 🔹 1 मुस्लिम मंत्री

  • 🔹 3 महिला मंत्री

  • 🔹 OBC, EBC वर्ग से लगभग 60% मंत्रियों का प्रतिनिधित्व

  • 🔹 SC/ST वर्ग से भी संतुलित भागीदारी

  • 🔹 भाजपा और जदयू के बीच सीटों का संतुलन

हालाँकि कई राजनीतिक विश्लेषक इस संरचना को “असंतुलित” बता रहे हैं।

मुस्लिम प्रतिनिधित्व केवल 1 — विपक्ष ने सवाल उठाए

बिहार की लगभग 17% मुस्लिम आबादी के बावजूद मंत्रिमंडल में केवल एक मुस्लिम मंत्री को जगह मिली है।
RJD और कांग्रेस ने इसे “असंतोषजनक” और “सांप्रदायिक संतुलन की उपेक्षा” बताया।

RJD नेता ने कहा:

“17% जनसंख्या के लिए 1 मंत्री, क्या यही प्रतिनिधित्व है?”

महिलाओं को सिर्फ 3 मंत्रालय

महिला जनसंख्या और उनके राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए उम्मीद थी कि इस बार महिलाओं की संख्या बढ़ेगी, लेकिन कैबिनेट में:

  • कुल 26 में से सिर्फ 3 महिलाएँ

  • कोई भी महिला को प्रमुख मंत्रालय नहीं दिया गया

महिला संगठनों ने इसे “राजनीतिक पिछड़ापन” कहा है।

जातीय समीकरण पर सरकार का फोकस

सरकार ने OBC–EBC–SC वर्गों को पर्याप्त स्थान दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह “मतदाता आधार को मजबूत करने” की रणनीति है।

जदयू प्रवक्ता ने कहा:

“हमने सभी वर्गों का संतुलन सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। महिलाओं और अल्पसंख्यकों को भी उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है।”

जनता की प्रतिक्रिया — सोशल मीडिया पर बहस

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर बहस तेज है।

कई उपयोगकर्ताओं ने लिखा:

“महिला अधिकारों पर बात करने वाली सरकार में महिलाओं को सिर्फ तीन सीटें क्यों?”

दूसरों ने कहा:

“विकास और प्रशासनिक क्षमता, दोनों महत्वपूर्ण हैं। जाति या धर्म से सरकार नहीं चलती।”

निष्कर्ष

नई NDA सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही बिहार की राजनीति में प्रतिनिधित्व का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है।
मुस्लिम और महिला मंत्रियों की कम संख्या चाहे राजनीतिक रणनीति हो या मजबूरी, लेकिन इस पर राजनीतिक बहस का दौर जारी रहेगा।

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