
बिहार की राजनीति में ‘नियुक्ति राज’, NDA नेताओं और कार्यकर्ताओं की निकली लॉटरी
लेखक: SLive24 न्यूज़ डेस्क | स्थान: पटना |
बिहार की राजनीति में एक बार फिर ‘नियुक्ति राज’ की जोरदार वापसी हुई है। एनडीए सरकार के गठन के बाद राज्य में विभिन्न आयोगों और बोर्डों में अपने खास नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को ताबड़तोड़ पद बांटे जा रहे हैं। इन नियुक्तियों को लेकर सत्ता पक्ष में जहां उत्सव का माहौल है, वहीं विपक्ष ने इसे ‘राजनीतिक बंदरबांट’ और ‘लोकतांत्रिक संस्थाओं की अनदेखी’ करार दिया है।
पृष्ठभूमि: क्यों हो रही हैं ये नियुक्तियाँ?
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी जोरों पर है। ऐसे में एनडीए सरकार ने संगठन को मजबूत करने और पार्टी कार्यकर्ताओं को साधने के लिए उन्हें विभिन्न आयोगों, बोर्डों और योजनाओं में समायोजित करना शुरू कर दिया है। यह कदम राजनीतिक तौर पर ‘संतुलन’ और ‘इनाम’ दोनों के रूप में देखा जा रहा है।
25 आयोगों में बंटे पद, वर्षों से खाली थी कुर्सियां
राज्य सरकार द्वारा संचालित 25 से अधिक बोर्ड और आयोग पिछले 16 महीनों से खाली पड़े थे। अब इनमें से अधिकांश का पुनर्गठन शुरू हो गया है। सूत्रों की मानें तो करीब दो दर्जन आयोगों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य जैसे पदों पर एनडीए के नेताओं और समर्थक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई है।
अब तक की बड़ी नियुक्तियाँ:
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सवर्ण आयोग:
भाजपा नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को अध्यक्ष और जदयू के राजीव रंजन को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। -
अनुसूचित जनजाति आयोग:
शैलेन्द्र को अध्यक्ष और सुरेंद्र उडाव को उपाध्यक्ष बनाया गया है। -
अल्पसंख्यक आयोग:
जदयू के वरिष्ठ नेता गुलाम रसूल बलियावी को अध्यक्ष बनाया गया है। लखविंदर सिंह और मौलाना उमर नूरानी को उपाध्यक्ष पद मिला है। साथ ही छह अन्य सदस्यों की भी नियुक्ति हुई है।
इन पदों पर नियुक्त अधिकांश लोग या तो एनडीए गठबंधन के सदस्य हैं या विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी के लिए काम कर चुके हैं।
बीस सूत्री कार्यक्रम में भी कार्यकर्ताओं को इनाम
राज्य सरकार ने पहले ही सभी 534 प्रखंडों में बीस सूत्री योजना समितियों का गठन कर लगभग 8,000 एनडीए कार्यकर्ताओं को समायोजित किया है। यह कदम सरकार के स्तर पर कार्यकर्ताओं के प्रति आभार प्रकट करने और चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
विपक्ष ने किया तीखा हमला
राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने इन नियुक्तियों को “खुली राजनीतिक बंदरबांट” करार दिया। उन्होंने कहा कि “बोर्ड और आयोग जनता की भलाई के लिए होते हैं, न कि पार्टी कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करने के लिए।”
राजनीतिक विश्लेषण:
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. संजय कुमार के अनुसार, “हर सरकार अपने वफादारों को सत्ता में हिस्सेदारी देती है। ये नियुक्तियां चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं। इससे कार्यकर्ताओं में जोश आता है और संगठन मजबूत होता है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि जातीय और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए ही यह सूची तैयार की गई है। इसका मकसद हर क्षेत्र और समुदाय में अपनी जड़ें मजबूत करना है।
क्या आगे और भी नाम आएंगे?
सूत्रों के मुताबिक, अभी करीब डेढ़ दर्जन आयोगों का पूर्ण गठन बाकी है, जिनमें भाजपा, जदयू, लोजपा (रा), हम और रालोसो जैसे घटक दलों के नेताओं को स्थान मिलने की संभावना है। आने वाले हफ्तों में और भी नियुक्तियों की घोषणा की जा सकती है।
निष्कर्ष:
राज्य में ‘नियुक्ति राज’ को लेकर जहां सत्तापक्ष में खुशी है, वहीं विपक्ष और जनता के एक वर्ग में असंतोष भी नजर आ रहा है। अब देखना होगा कि यह ‘लॉटरी’ आखिर कितने लोगों को सत्ता की कुर्सियों तक पहुँचाती है और कितने लोगों को इंतजार करना पड़ता है।