पटना: बिहार में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की पड़ताल के दौरान एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है। राज्य सरकार ने खुलासा किया है कि वृद्धावस्था, विधवा और विकलांग पेंशन योजनाओं के तहत 2 लाख से अधिक मृत लोगों के बैंक खातों में वर्षों से पेंशन जारी हो रही थी।
यह मामला बिहार प्रशासन की सबसे बड़ी निगरानी विफलताओं में से एक माना जा रहा है।
कैसे खुला घोटाला?
सामाजिक कल्याण विभाग की हाई-लेवल समीक्षा बैठक में यह डेटा सामने आया कि:
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कई जिलों में मृत लाभार्थियों के नाम अभी भी एक्टिव लिस्ट में थे
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सिस्टम में मृत्यु प्रमाणपत्र अपडेट नहीं किया गया था
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बैंक खातों में लगातार राशि ट्रांसफर होती रही
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कुछ मामलों में परिवारों ने मृतक का रूप धारण कर जाली बायोमेट्रिक भी दिया
इस खुलासे ने प्रशासन को हिला दिया, जिसके बाद तुरंत राज्यस्तरीय जांच का आदेश दिया गया।
सरकार ने कड़ी कार्रवाई की घोषणा की
राज्य की सामाजिक कल्याण सचिव वंदना प्रेयसी ने सभी जिलाधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए:
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मृत लाभार्थियों का पूर्ण सत्यापन 7 दिनों में पूरा करें
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2 लाख मृत लोगों को दी गई राशि की वसूली की प्रक्रिया शुरू करें
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पेंशन सिस्टम में नया बायोमेट्रिक सत्यापन लागू करें
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हर जिले में स्पेशल टास्क टीम गठित की गई
प्रशासन ने माना कि यह वित्तीय नुकसान करोड़ों रुपये तक पहुंच सकता है।
नया सत्यापन: चेहरे की पहचान + फिंगरप्रिंट + आईरिस स्कैन
भविष्य में फर्जीवाड़ा रोकने के लिए सरकार ने बड़े बदलाव किए हैं:
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हर पेंशनधारी का फेशियल रिकग्निशन
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नियमित फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन
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पंचायत स्तर पर 80,000 कर्मचारियों की तैनाती
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CSC केंद्रों की मदद से टेक्नोलॉजी आधारित सत्यापन
यह पहली बार है जब राज्य स्तर पर इतने बड़े पैमाने पर फेशियल वेरिफिकेशन अभियान चलाया जा रहा है।
कितने पैसे गये? कितना वापस आएगा?
अभी तक अनुमान है कि:
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2 लाख मृत व्यक्तियों के खातों में करीब 200–300 करोड़ रुपये तक की राशि दी गई
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वसूली अभियान शुरू हो चुका है
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परिवारों/वारिसों को नोटिस भेजे जा रहे हैं
सरकार का दावा है कि वसूली 100% नहीं, लेकिन बहुत हद तक संभव है।
जिम्मेदारी तय होगी?
जांच में सामने आएगा कि—
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CSC ऑपरेटर
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पंचायत सेवक
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कुछ बैंक कर्मचारी
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और स्थानीय निकाय अधिकारी
इस फर्जीवाड़े में किस हद तक शामिल थे?
जांच एजेंसियों ने संकेत दिया है कि क्रिमिनल केस भी दर्ज हो सकता है।
घोटाले का प्रभाव — राजनीतिक और सामाजिक दोनों
यह मामला चुनावों के बाद सामने आया है और विपक्ष सरकार को घेरने में जुट गया है।
मुख्य विपक्षी दलों ने कहा:
“सरकार की लापरवाही से राज्य के पैसे की लूट हुई है।”
वहीं सरकार का कहना है कि:
“हमने खुद घोटाला पकड़ा है, इसलिए हमारी मंशा साफ़ है।”
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे सच्चे लाभार्थियों की पहचान मजबूत होगी।
निष्कर्ष
बिहार में 2 लाख मृत लाभार्थियों का मामला सिर्फ एक घोटाला नहीं, बल्कि सिस्टम की जमी हुई खामियों का संकेत है।
अब राज्य सरकार इसे सुधारने के लिए बड़े सुधार कर रही है — लेकिन असली सफलता तभी होगी जब वसूली और सत्यापन दोनों पूरी पारदर्शिता से पूरे हों।



