
पटना/बिहार:
बिहार में एक बार फिर टेंडर घोटाले का जिन्न बाहर आ गया है। इस बार मामला इतना गंभीर है कि जांच की कमान प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने संभाल ली है। 2025 के इस टेंडर घोटाले में डेढ़ दर्जन से अधिक कंपनियों पर दस्तावेजों में टेम्परिंग (छेड़छाड़) कर करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट हथियाने का आरोप है।
कंपनियों ने कैसे किया घोटाला?
जांच में सामने आया है कि कई कंपनियों ने अपने पूर्व प्रोजेक्ट्स की कीमतों को दस्तावेजों में बढ़ाकर दिखाया ताकि उन्हें नए टेंडर में योग्यता प्राप्त हो सके।
जालाराम प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी ने गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (GIDC) से प्राप्त कार्य की लागत को 20.84 करोड़ दिखाया, जबकि बिहार बुडको को दिए दस्तावेजों में यही काम 27.94 करोड़ दर्शाया गया। यानी लगभग 7 करोड़ रुपये की टेम्परिंग की गई।
Dev Construction भी संदेह के घेरे में
M/S Dev Construction ने भी टेंडर प्रक्रिया में धोखाधड़ी की। आगरा स्मार्ट सिटी के एक जॉइंट वेंचर प्रोजेक्ट को स्वतंत्र अनुभव के रूप में दर्शाया गया और इसी के आधार पर बिहार में ठेका हासिल किया। यही नहीं, कंपनी द्वारा प्रस्तुत अन्य दस्तावेजों में भी गड़बड़ियां पाई गई हैं।
बुडको की भूमिका संदिग्ध
बिहार शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड (बुडको) जो राज्य में अरबों रुपये की शहरी योजनाएं क्रियान्वित करता है, इस पूरे घोटाले के केंद्र में है। आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी में पाया गया कि बुडको की ओर से न तो दस्तावेजों की जांच सही से की गई और न ही सत्यापन की प्रक्रिया का पालन किया गया।
ईडी की जांच में तेजी
ईडी अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक कंपनियों से संबंधित दस्तावेजों की मांग नगर विकास विभाग से कर चुकी है। लेकिन टेंडर प्रक्रिया में अनियमितताएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अब यह देखना होगा कि क्या ईडी की जांच इस घोटाले के मूल जड़ तक पहुंच पाती है या नहीं।
अधिकारियों की चुप्पी, सवालों के घेरे में व्यवस्था
इस घोटाले में बुडको के वरिष्ठ अधिकारी सवालों के घेरे में हैं। हाल ही में आईएएस संजय हंस और रिशु श्री से जुड़े मामलों ने पहले ही विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। RTI से उजागर दस्तावेजों ने अब यह साबित कर दिया है कि यह घोटाला सिर्फ एक तकनीकी गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित आपराधिक साजिश है। (source news24)