सूर्योपासना का महान पर्व — छठ पूजा
✍️ लेखक: प्रदीप कुमार नायक
बिहार की संस्कृति का आत्मा: छठ पूजा
छठ पर्व — जिसे छइठ, षष्ठी या सूर्य षष्ठी पूजा के नाम से भी जाना जाता है —
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
यह सूर्योपासना का महान पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है,
बल्कि यह प्रकृति, जल, वायु और जीवन के संतुलन का उत्सव भी है।
मुख्य रूप से यह पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और
नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
कहा जाता है कि यह मैथिल, मगही और भोजपुरी समाज का सबसे बड़ा पर्व है —
जो इनकी संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
वैदिक काल से चली आ रही परंपरा
छठ पूजा कोई आधुनिक उत्सव नहीं, बल्कि इसका आधार ऋग्वेद में मिलता है।
ऋषियों ने सूर्य उपासना, उषा पूजन और आर्य परंपरा के रूप में
इस पर्व की नींव रखी थी।
बिहार की मिट्टी में आज भी वही वैदिक संस्कृति की झलक देखी जा सकती है —
जहाँ प्रकृति और तत्वों की पूजा को ही जीवन का आधार माना गया है।
यह एक ऐसा पर्व है जो शुद्धता, संयम और अनुशासन पर आधारित है।
छठी मइया और सूर्य देव की आराधना
छठ पूजा सूर्य देव और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है।
छठी मइया को मिथिला में रनबे माय,
भोजपुरी क्षेत्र में सबिता माई,
और बंगाल में रनबे ठाकुर कहा जाता है।
माना जाता है कि छठी मइया भगवान सूर्य की ऊर्जा का स्त्री रूप हैं —
जो जीवन, स्वास्थ्य, और संतान सुख का आशीर्वाद देती हैं।
चार दिनों की कठोर साधना
छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है,
जिसमें शुद्धता, उपवास और तपस्या का विशेष महत्व है।
| दिन | अनुष्ठान | विशेषता |
|---|---|---|
| पहला दिन – नहाय खाय | व्रती स्नान कर अरवा चावल, सेंधा नमक और कद्दू की सब्जी खाते हैं। | शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक। |
| दूसरा दिन – खरना | पूरे दिन निर्जला उपवास, शाम को गुड़ की खीर, रोटी और फल से पूजा। | आत्म संयम और भक्ति की शुरुआत। |
| तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य | व्रती नदी या तालाब के किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। | सूर्य की ऊर्जा और जीवन के प्रति कृतज्ञता। |
| चौथा दिन – उषा अर्घ्य | उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है। | नई शुरुआत और जीवन की पूर्णता का प्रतीक। |
पूरे अनुष्ठान में लहसुन-प्याज का प्रयोग वर्जित होता है,
और घर-आंगन की पूर्ण सफाई के बाद ही पूजा आरंभ होती है।
छठ व्रत — तपस्या का अद्भुत उदाहरण
छठ व्रत को सबसे कठिन व्रत कहा गया है।
व्रती (परवैतिन) को लगातार निर्जल उपवास,
भूमि पर विश्राम, और पवित्र वस्त्रों में रहना होता है।
महिलाएँ बिना सिलाई की सूती साड़ी,
और पुरुष धोती-कुर्ता पहनकर पूजा करते हैं।
व्रती रातभर जागरण करती हैं और
भक्ति गीतों से वातावरण को आध्यात्मिक बना देती हैं।
“छठ मइया से कीनऽ अर्घ जल में,
सुरज देव जी, दीं न उजियार।” 🌅
सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता का पर्व
छठ केवल पूजा नहीं —
यह सामूहिकता, समानता और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है।
इस पर्व में स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, जाति-धर्म का भेद मिट जाता है।
हर व्यक्ति घाट पर एक साथ खड़ा होकर
सूर्य को अर्घ्य देता है और प्रसाद साझा करता है।
यह पर्व बिहार और उत्तर भारत में
सांस्कृतिक एकता का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है।
छठ और आधुनिक राजनीति
छठ पूजा बिहार और उत्तर प्रदेश के बाहर भी
उत्तर भारतीय समाज की पहचान बन चुकी है।
महाराष्ट्र जैसे राज्यों में
इसे प्रवासी समुदायों ने लोकप्रिय बनाया है।
हालाँकि, कुछ राजनीतिक दलों ने
इसे क्षेत्रीय शक्ति प्रदर्शन बताकर विरोध भी किया है,
लेकिन आज यह राष्ट्रीय लोकपर्व के रूप में सम्मानित हो चुका है।
छठ का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी गहरा है।
इस दौरान सूर्य की किरणें जब शरीर पर पड़ती हैं,
तो यह विटामिन D का प्राकृतिक स्रोत बनती हैं।
नदी के स्वच्छ जल में खड़े रहना
डिटॉक्सिफिकेशन (विषहरण) की प्रक्रिया को सक्रिय करता है।
उपवास और ध्यान से शरीर और मन दोनों में ऊर्जा संतुलन स्थापित होता है।
छठ के भक्ति गीत और लोकसंस्कृति
छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले भक्ति गीत
लोक परंपरा और संगीत का अद्भुत संगम हैं।
कुछ प्रसिद्ध छठ गीत:
🎵 “केलवा के पात पर उगेलन सुरज देव”
🎵 “पटना के घाटे पर होखेला अर्घ दान”
🎵 “छठी मइया से नयनवा ना हटे”
ये गीत मां-बहनों की आस्था, लोकधुन और संस्कृति को जीवित रखते हैं।
छठ मइया का प्रसाद — पवित्रता का प्रतीक
छठ पूजा के प्रसाद में खासतौर पर शामिल होते हैं:
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ठेकुआ (गुड़ और गेहूं के आटे से)
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केला, नारियल, गन्ना
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सुप और बांस की डलिया में रखा प्रसाद
इन सबका प्रतीक — प्राकृतिक, सात्विक और शुद्ध जीवनशैली।
निष्कर्ष: छठ – आस्था, अनुशासन और आत्मशक्ति का संगम
छठ पूजा भारत की सबसे पवित्र और वैज्ञानिक परंपराओं में से एक है।
यह केवल सूर्य की उपासना नहीं, बल्कि
मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व का उत्सव है।
“छठ मइया के चरणन में,
सब दुख-संकट दूर भइल।” 🙏
आज जब जीवन भागदौड़ और प्रदूषण से भरा है,
छठ हमें सिखाता है —
“शुद्ध रहो, संयम रखो और प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहो।”
📎 संदर्भ:
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प्रदीप कुमार नायक, लोक संस्कृति शोधकर्ता
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ऋग्वेद के सूर्य सूक्त और छठ परंपरा से संबंधित साहित्य
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Bihar Tourism Board – Cultural Heritage Reports



