क्या आप जानते हैं कद्दू-भात से क्यों की जाती है छठ पूजा की शुरुआत? जानिए इसके पीछे का रहस्य
पटना: लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा 2025 आज से आरंभ हो रहा है। इस पावन पर्व की शुरुआत होती है ‘नहाए-खाए’ के साथ — जो शुद्धता, संयम और सूर्य उपासना की परंपरा का प्रतीक है। इस दिन व्रती स्नान के बाद लौकी-भात (कद्दू-भात) का सेवन करते हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
‘नहाए-खाए’: शुद्धता और संयम का प्रतीक
छठ पूजा के पहले दिन व्रती प्रातःकाल गंगा, नदी या तालाब में स्नान करते हैं। स्नान के बाद वे शुद्धता के साथ भोजन पकाते हैं।
भोजन पकाने के समय घर और रसोई की सफाई, लकड़ी या मिट्टी के चूल्हे का उपयोग, और बिना मसाले का भोजन बनाना अनिवार्य माना जाता है। यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल और शुद्धता का प्रतीक है।
कद्दू-भात खाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण
लोक संस्कृति और छठ पर्व के ज्ञाता हृदय नारायण झा बताते हैं कि इस परंपरा का गहरा वैज्ञानिक आधार है।
लौकी में लगभग 95% पानी होता है, जो शरीर में तरल संतुलन बनाए रखता है। वहीं, भात यानी चावल शरीर को त्वरित ऊर्जा प्रदान करता है और ठंडक देता है।
चूंकि आने वाले दिनों में व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं, इसलिए शरीर में पर्याप्त जल की मात्रा बनाए रखने के लिए ‘नहाए-खाए’ के दिन कद्दू-भात खाना अनिवार्य हो गया। यह शरीर को उपवास के लिए तैयार और संतुलित रखता है।
ऊर्जा और संतुलन देने वाला भोजन
हृदय नारायण झा के अनुसार, लौकी और भात का यह संयोजन शरीर में हल्कापन और पाचन शक्ति बनाए रखता है।
कई घरों में इस दिन चना दाल भी लौकी के साथ पकाई जाती है, जिससे भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है।
लौकी में मौजूद फाइबर, मिनरल्स और विटामिन शरीर को ठंडा रखते हैं और पानी की कमी से बचाते हैं।
यह भोजन न केवल ऊर्जा देता है बल्कि शरीर में शुद्धता और संतुलन भी बनाए रखता है।
मसाले रहित भोजन: संयम का प्रतीक
‘नहाए-खाए’ के दिन का भोजन पूरी तरह मसाला-रहित होता है।
इसका कारण यह है कि मसाले शरीर में गर्मी और गैस उत्पन्न कर सकते हैं, जो उपवास से पहले हानिकारक हो सकता है।
लौकी-भात का सरल भोजन पाचन को संतुलित रखता है और शरीर को शुद्ध व शांत बनाता है।
झा के अनुसार —
“छठ पर्व में केवल आहार की नहीं, बल्कि आचार और विचार की शुद्धता भी आवश्यक है। यही इस पर्व की आत्मा है।”
जल और मिट्टी से शुद्धता की परंपरा
‘नहाए-खाए’ के दिन स्नान और भोजन दोनों का गहरा आध्यात्मिक अर्थ है।
जहाँ स्नान बाहरी शुद्धि का प्रतीक है, वहीं कद्दू-भात आंतरिक शुद्धता का प्रतीक है।
मिट्टी के चूल्हे पर बना यह भोजन प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण के सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
इसीलिए इसे “आस्था का प्रथम प्रसाद” कहा जाता है।
यह दिन न केवल छठ पूजा की शुरुआत है, बल्कि मन, शरीर और आत्मा की पवित्रता का संकल्प भी है।
संध्या और उषा अर्घ्य की तैयारियाँ
छठ पूजा 2025 का चरम 27 अक्टूबर को षष्ठी तिथि पर होगा।
पंचांग के अनुसार, यह तिथि 27 अक्टूबर को सुबह 06:04 बजे से 28 अक्टूबर सुबह 07:59 बजे तक रहेगी।
इस अवधि में दो मुख्य अनुष्ठान होंगे:
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27 अक्टूबर (संध्या अर्घ्य): सूर्यास्त के समय भक्त जल में खड़े होकर सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करेंगे।
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28 अक्टूबर (उषा अर्घ्य): सूर्योदय के समय दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा।
घाटों पर दीपदान, आरती, और भव्य सजावट के साथ श्रद्धालु सूर्य देव को नमन करेंगे। पूरा वातावरण भक्ति और उल्लास से भर जाएगा।
कद्दू-भात: आस्था और विज्ञान का संगम
कद्दू-भात का सेवन न केवल एक धार्मिक कर्मकांड है बल्कि विज्ञान और परंपरा का संगम है।
यह भोजन शरीर को ऊर्जा, पवित्रता और संतुलन प्रदान करता है, जिससे व्रती आने वाले उपवास को सहजता से निभा सकें।
यह परंपरा हमें सिखाती है कि प्रकृति और शरीर के सामंजस्य से ही सच्ची पूजा संभव है।
FAQs: कद्दू-भात और छठ पूजा से जुड़े सामान्य प्रश्न
Q1. छठ पूजा की शुरुआत ‘नहाए-खाए’ से क्यों होती है?
👉 क्योंकि यह दिन शुद्धता, संयम और सूर्य उपासना की तैयारी का प्रतीक है।
Q2. कद्दू-भात ही क्यों खाया जाता है?
👉 लौकी में 95% पानी और भात में ऊर्जा होती है, जो शरीर को उपवास के लिए तैयार रखती है।
Q3. क्या कद्दू-भात धार्मिक रूप से अनिवार्य है?
👉 हाँ, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे “आस्था का प्रथम प्रसाद” माना जाता है।
Q4. क्या मसालेदार भोजन इस दिन वर्जित है?
👉 हाँ, ‘नहाए-खाए’ के दिन केवल बिना मसाले का भोजन ही ग्रहण किया जाता है।
Q5. छठ पूजा 2025 में संध्या और उषा अर्घ्य कब होंगे?
👉 संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर को और उषा अर्घ्य 28 अक्टूबर की सुबह अर्पित किया जाएगा।
Q6. मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने का क्या कारण है?
👉 यह पर्यावरण के अनुकूल होता है और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
निष्कर्ष
छठ पूजा की शुरुआत कद्दू-भात से करना मात्र एक परंपरा नहीं, बल्कि शरीर और आत्मा की शुद्धि का सुंदर संगम है।
यह भोजन भक्तों को ऊर्जा, संयम और श्रद्धा के साथ सूर्य उपासना के इस दिव्य पर्व में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
सच कहा गया है — जहाँ आस्था है, वहाँ विज्ञान भी अपना स्वरूप बदलकर उपस्थित रहता है।



