
Chirag Paswan आखिर क्यों बटोर रहे सुर्खियां? सबसे बड़ा सवाल वे NDA में रहेंगे या बदलेंगे पाला?
लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मियों के बीच चिराग पासवान और बिहार की राजनीति काफी सुर्खियों में हैं। उनके NDA गठबंधन छोड़कर INDI गठबंधन जॉइन करने की चर्चा है। उनके और उनके चाचा के बीच कोल्ड वार अलग से चल रहा है। ऐसे में बिहार की सियासत गरमाई हुई है।
लोकसभा चुनाव 2024 सिर पर हैं और राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान इन दिनों सुर्खियां बटोर रहे हैं। उनके NDA छोड़कर INDI गठबंधन के साथ जाने की चर्चा है। हालांकि यह केवल कयास है, लेकिन चर्चाओं का बाजार गर्म है। चिराग पासवान या दोनों गठबंधनों की ओर से ऐसी कोई बात या जानकारी नहीं दी गई है। चर्चा को बल इसलिए मिल रहा है, क्योंकि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है।
किसी भी दल का कोई भी नेता किसी भी समय दूसरे दल या गठबंधन का हिस्सा हो सकता है। छोटे दलों का तो इतिहास ही अवसरवाद के लिए जाना जाता है। चाहे बिहार के CM नीतीश कुमार हों या चिराग पासवान के पिता राम विलास पासवान और अब चिराग और पारस पासवान, सबकी यही गति है और इसलिए यह ताजी हवा चल पड़ी है।
NDA में नीतीश की एंट्री ने बिगाड़ा खेल
खैर, सच जो भी हो, एक बार यह देखने का समय है कि चिराग पासवान NDA में रहकर फायदे में रहेंगे या INDI गठबंधन में? यही वह यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब हर आदमी तलाशने में जुटा हुआ है। चिराग अभी जमुई से सांसद हैं। राम विलास पासवान की लोकजन शक्ति पार्टी पिछले चुनाव में NDA का हिस्सा थी और शानदार विजय मिली थी। पार्टी अध्यक्ष के निधन के बाद चिराग के चाचा पारस पासवान ने पार्टी पर कब्जा कर लिया।
इस तरह राम विलास पासवान की बनाई पार्टी 2 हिस्सों में बंट गई। पारस केंद्र में मंत्री हैं। अब पारस और चिराग, दोनों NDA का हिस्सा हैं। हाल ही में नीतीश के पाला बदल कर NDA में आने के बाद चिराग का गणित कुछ बिगड़ता दिखाई दे रहा है, इसलिए उनके INDI गठबंधन का हिस्सा बनने की चर्चा शुरू हो गई, क्योंकि उन्हें वहाँ ज्यादा सीटें और सम्मान मिल सकता है।
बिहार में सीटों की शेयरिंग भी बनी टेंशन
पिछले चुनाव में बिहार की 40 सीटों में 17 भाजपा और 16 जदयू ने जीती थीं। 6 सीटें लोकजन शक्ति पार्टी के पास थीं। विपक्ष को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था। चिराग चाहते हैं कि इस बार भी 6 सीटें मिलें, जो उन्हें नहीं मिलने वाली हैं, क्योंकि केंद्र में मंत्री उनके चाचा पारस पासवान भी दावेदारों में हैं। NDA गठबंधन के सामने चुनौती यह है कि वह अगर भाजपा को 17 से कम सीटें देती है तो नाइंसाफी होगी। कम से कम 16 सीटों की दावेदारी जदयू भी पेश कर सकती है।
हालाँकि, चर्चा इस बात की भी तेज है कि बिहार में हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद नीतीश कुछ सीटों पर समझौता कर सकते हैं। NDA के अन्य दावेदारों में उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी भी हैं। वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं कि जीतन राम मांझी लोकसभा चुनाव में दावेदारी नहीं ठोकने वाले हैं। उनके बेटे को विधान परिषद सीट मिली है, लेकिन कम से कम एक सीट VIP और 2 सीटें उपेन्द्र कुशवाहा को मिल सकती हैं। अगर 5 या 6 सीटें चिराग और पारस के दलों को मिलेंगी तो तय है कि जदयू को समझौता करना पड़ेगा।
चाचा पारस के साथ चल रही अंदरुनी लड़ाई
बिहार के एक और वरिष्ठ पत्रकार मनीष मिश्र कहते हैं कि चिराग पासवान को लेकर हवा इसलिए भी उड़ गई, क्योंकि हाल ही में जब नीतीश ने मुख्यमंत्री पदी की शपथ ली तो वे नहीं पहुंचे थे। प्रधानमंत्री मोदी की हाल में हुई जनसभाओं में भी चिराग नहीं दिखाई दिए। सीटों के अलावा एक और लड़ाई चिराग-पारस यानी चाचा-भतीजे के बीच चल रही है। वह है हाजीपुर सीट, जहां से पारस अभी सांसद हैं। यह सीट परंपरागत रूप से राम विलास पासवान की रही है।
उनके निधन के बाद पारस ने वहां से जीत दर्ज की। चिराग चाहते हैं कि चाचा हाजीपुर सीट छोड़कर कहीं और से चुनाव लड़ लें। वह सीट उनकी मां को मिल जाए। चूंकि पारस पासवान अपने भाई की बनाई जमीन पर ही राजनीति कर रहे हैं, इसलिए वे हाजीपुर सीट नहीं छोड़ना चाहते। उन्हें यह भी पता है कि चिराग लंबी रेस के घोड़े हैं। कभी भी उन्हें पटकनी दे सकते हैं। ऐसे में उनके सामने एक अलग तरह की चुनौती है।
मां को हाजीपुर से चिराग लड़वाना चाहते चुनाव
चिराग को यह पता है कि NDA के साथ रहना उनके लिए फायदे का सौदा है। सीट भले ही कम मिले, लेकिन फिलहाल यहां उन्हें सुरक्षा ज्यादा मिलती रहेगी। सरकार बनने पर मंत्री भी बनने से इनकार नहीं किया जा सकता। चिराग ने अलग रहकर भी देख लिया है। विधानसभा चुनाव में वे NDA का हिस्सा नहीं थे, बाद में शामिल हुए। मनीष कहते हैं कि चिराग को मां को किसी भी तरह से हाजीपुर सीट से लड़वाना है।
खुद वे जमुई की जनता से वादा करके हाल ही में लौटे हैं कि वे अगला चुनाव यहीं से लड़ेंगे। ऐसे में कोई कारण नहीं है कि चिराग INDI गठबंधन के साथ जाएं, क्योंकि नए गठबंधन में सीटें भले ही ज़्यादा मिल जाएं, लेकिन जीत की गारंटी NDA में ज्यादा मजबूत है और यही अवसरवाद चिराग के पिता भी देखते थे। इसलिए वे हर सरकार में मंत्री बने रहे, चाहे NDA की हो, UPA की हो या उसके पहले की सरकारों की हो, वे लगतार जीतते और मंत्री पद की शपथ लेते रहे।
चिराग को करीब से जानने वाले लोग यह मानते हैं कि वह चाचा से ज्यादा शार्प हैं। पिता के नक्शे-कदम पर चलने वाले हैं। उनकी जमीन को बचाए रखना चाहते हैं। इसलिए उनके फिलहाल पाला बदलने की संभावना न के बराबर है। पर, राजनीति में कुछ भी, कभी भी होने से इनकार नहीं किया जा सकता।