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अलविदा कोरोना वॉरियर आरिफ़ खान!

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अलविदा कोरोना वॉरियर आरिफ़ खान!

सलाम हो हमारा ऐसे बहादुर पर, जिसने अपनी जान लोगों की खिदमत में गुज़ार दी।
ख़िदमत भी ऐसी, जिस पर नस्ल ए आदम फख्र महसूस करे। जिसपर इंसानियत नाज़ करे। जिस के लिए हर जान कीमती थी। बस किसी तरह अस्पताल पहुंचा दूं। जबकि पता हो कि सामने जानलेवा वायरस है, जो कभी भी आकर ज़िंदगी पर कब्ज़ा कर लेगा। मगर आरिफ़ बेख़ौफ़ होकर मैदान में डटे रहे और तकरीबन 200 मरीज़, जो कोरोना वायरस से जूझ रहे थे उनको अस्पताल में पहुंचाया। इतना ही नहीं तकरीबन 100 मय्यतों को कब्रिस्तान और श्मशान घाट तक भी पहुंचाया। उस वक़्त तक इंसान के जिस्म के साथ रहे जब उसके परिवार वाले भी दूर हो गए।

अफ़सोस कोरोना महामारी ने एक जिंदादिल वॉरियर की जान ले ली। कोरोना वायरस से संक्रमित आरिफ खान की शनिवार की सुबह मौत हो गई। वायरस ने उसी दिन जान ले ली जिस दिन उनको अस्पताल में एडमिट कराया।हिंदूराव अस्पताल में एडमिट कराया गया था।

आरिफ की मौत पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भी दुख जताया है। सच में ऐसे हीरो के लिए कौन दुखी ना हो जाए। आरिफ 25 साल से शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ जुड़े थे। वो भी फ्री में एम्बुलेंस चला रहे थे। जब से कोरोना मरीजों को लाना ले जाना कर रहे थे तब से एम्बुलेंस में ही सोते।

उनकी मौत पर शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र सिंह शंटी ने कहा, आरिफ जिंदादिल शख्सियत थे। तभी तो मुस्लिम होकर भी आरिफ ने अपने हाथों से 100 से अधिक हिंदुओं के शव का अंतिम संस्कार किया।

कितनी दुखदायी है ये मौत, को शख़्स सबके जनाजे ढोता रहा, आज उसके परिवार वाले उसके जनाजे के करीब भी नहीं आ सकते थे। दूर से ही आख़िरी बार परिवार ने उनकी सूरत देखी। वो भी कुछ मिनटों के लिए। उनका दफ़न कफ़न खुद शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह शंटी ने अपने हाथों से किया।

आरिफ 24 घंटे कोरोना संक्रमितों के लिए मुस्तैद रहते थे, जैसे कोई जवान बॉर्डर पर तैनात होता है। अपनी मौत से पहली वाली रात 2 बजे कोरोना के मरीजों को घर से ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया था, इनमें से कुछ की मौत के बाद उन्हें अंतिम संस्‍कार के लिए भी लेकर गए थे। मगर अब सिपहसालार इस दुनिया में नहीं रहा। दिल्ली के सीलमपुर का ये जांबाज़ रुखसत हो गया।

ये दुखदायी खबर कितने मैसेज हमारे बीच छोड़कर जा रही है। अभी कुछ दिन पहले जो सीलमपुर बदनाम कर दिया गया था। जिनको पत्थरबाज कहकर मुखातिब किया जा रहा था। पूरी तरह दंगाई बताया जा रहा था। आज उन्हीं के बीच से एक शख़्स इंसानियत का पैग़ाम हमारे लिए छोड़ गया। बता गया, देखो मौत सबको आनी है। आज नहीं तो कल। मगर अपना काम दुरुस्त करो। ताकि दुनिया आपकी मिसाल दे। ये तेरा ये मेरा में कुछ नहीं रखा। चार दिन की ज़िंदगी इंसानियत को ज़िंदा रखने में लगाओ। जैसे आरिफ़ चले गए छोड़ गए तो सिर्फ इंसानियत।

सबक लेना चाहिए आरिफ़ साहब से। और कम से कम अपने आसपास के लोगों की ही मदद करने की ठान लेनी चाहिए। उनके दुख दर्द में शामिल रहें। कब तक राजनीति का शिकार होते रहेंगे। आरिफ़ साहब आप चले गए, अभी तो आपकी इस दुनिया को बहुत ज़रूरत थी।

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