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आखिर क्यों एक-दूसरे के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं भारत और कतर?

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आखिर क्यों एक-दूसरे के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं भारत और कतर?

कतर और भारत के बीच राजनयिक रिश्तों की नींव 1970 के दशक में पड़ी थी। औपचारिक रूप से कतर ने भारत में 1974 में राजदूत नियुक्ति किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देर रात कतर से स्वदेश लौट आए हैं। उनकी संयुक्त अरब अमीरात की विजिट पहले से तय थी लेकिन कतर का दौरा अचानक बना। पीएम ने पहले भी अचानक यात्राएं की हैं। उनकी पाकिस्तान की एक यात्रा काफी सुर्खियों में रही, जब वे पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के घर पहुंच गए थे। कतर की अचानक बनी इस यात्रा के कई मायने हैं। जितने मुंह-उतनी बातें सामने आ रही हैं। लेकिन कतर और भारत, दोनों एक-दूसरे के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। समय-समय पर दोनों ने यह साबित भी किया है।

 

पीएम मोदी का ताजा कतर दौरा बेहद संक्षिप्त था। वे 14 फरवरी शाम कतर पहुंचे हैं और 15 फरवरी रात दिल्ली वापस आ गए। वहां उनकी मुलाकात कतर के शासक और अन्य महत्वपूर्ण लोगों से हुई। पीएम की अचानक बनी इस यात्रा को पूर्व भारतीय नौसैनिकों की रिहाई से जोड़कर देखा जा रहा है। फांसी की सजा पाए आठ भारतीय पूर्व नौसैनिकों की सजा पहले कम हुई और अब वे रिहा होकर स्वदेश पहुंच गए हैं। वापसी के बाद सभी ने मुक्तकंठ से मोदी की सराहना की है। देश ने भी माना कि उनकी रिहाई केंद्र सरकार और पीएम की कूटनीति की वजह से ही हो पाई है। मोदी ने लगभग सभी खाड़ी देशों से आगे बढ़कर रिश्ते को गर्मी दी है लेकिन सऊदी अरब, यूएई, कतर का विशेष स्थान है। तीनों देशों की भारत में रुचि है। सऊदी अरब और यूएई तो भारत में इन्वेस्ट भी कर रहे हैं।

 

एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं भारत-कतर

अचानक बनी कतर यात्रा का सच जो भी हो, पर कतर-भारत एक-दूसरे के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। कतर की लगभग एक चौथाई आबादी भारतीयों की है। कतर की तरक्की में भारतीयों का सबसे बाद योगदान है। मजदूर भारतीय तो हैं ही, करीब 15 हजार भारतीयों ने वहां कंपनियां खोल रखी हैं और दोहा में बैठकर बिजनेस कर रहे हैं। व्यापार, कूटनीति की दृष्टि से तो दोनों के-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं ही। जब खाड़ी के अनेक मुस्लिम देशों ने कतर का साथ छोड़ दिया था तब भी भारत उसके साथ खड़ा था। यह रिश्तों में गर्माहट का ही असर है कि कतर एलएनजी की आपूर्ति भारत को आधी कीमत पर कर रहा है। यद्यपि, भाजपा नेता रहीं नूपुर शर्मा के पैगंबर साहब को लेकर दिए गए एक विवादित बयान पर दुनिया का पहला देश कतर ही था जिसने आपत्ति जताई और माफी मांगने को कहा। पर, जैसे ही भाजपा ने नूपुर शर्मा को पार्टी से हटाने का फैसला किया तो कतर ने आगे बढ़कर स्वागत भी किया।

 

50 वर्ष से ज्यादा का भारत-कतर का रिश्ता

कतर और भारत के बीच राजनयिक रिश्ते 1970 के दशक में बने। औपचारिक तौर पर कतर ने भारत में साल 1974 में राजदूत की नियुक्ति की। यद्यपि बड़ी संख्या में भारतीय वहां पहले से मौजूद थे। कहा जा सकता है कि कतर की तरक्की में भारत-भारतीयों की अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं।

व्यापार में भी दोनों देशों की अहम भागीदारी

साल 1990 तक कतर की कुल आबादी का एक तिहाई भारतीय वहां रह रहा था। कतर, भारत से अनाज, कपड़े, मशीनरी, सब्जियां और दैनिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण चीजों की खरीद कर रहा है तो वह भारत को एलएनजी की आपूर्ति का रहा है। चीन और जापान के बाद गैस खरीदने वाला भारत तीसरा सबसे बड़ा साझेदार है। कहने की जरूरत नहीं है कि गैस की भूमिका हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसका इस्तेमाल ऊर्जा के अनेक क्षेत्रों में हो रहा है। दोनों देशों के बीच साल 2022-23 में व्यापार लगभग 19 अरब डॉलर का था। इसमें करीब 17 अरब डॉलर का आयात तथा दो अरब डॉलर का निर्यात शामिल है।

 

पीएम मोदी ने रिश्तों को और आगे बढ़ाया

साल 2014 में सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने अलग-अलग मौकों पर वहां के शासक थानी से कई मुलाकातें की। वे कतर भी गए और दूसरे देशों में भी मिले। नतीजा यह हुआ कि कतर ने एलएनजी की कीमत आधी कर दी। हालांकि, ऐसा कुछ शर्तों के साथ हुआ लेकिन भारत की बड़ी विदेशी मुद्रा बचने लगी। साल 2017 में जब कतर के रिश्ते पड़ोसी देशों सऊदी अरब, बहरीन, यूएई, मिस्र आदि से खराब हो गए तब भी भारत ने सामंजस्य बैठाते हुए कतर का साथ दिया। यह महत्वपूर्ण था। मोदी से पहले पीएम रहे डॉ मनमोहन सिंह ने भी साल 2008 में कतर का दौरा किया था।

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