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लालू यादव और तेजस्वी के बीच नेतृत्व की जंग! RJD पर JDU-BJP का वार

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लालू यादव और तेजस्वी के बीच नेतृत्व की जंग! RJD पर JDU-BJP का वार

लालू यादव ने नीतीश कुमार का महागठबंधन में आने का ऑफर दिया. तेजस्वी ने खंडन किया. आरजेडी में अंतर्कलह का सवाल बीजेपी-जेडीयू उठा रहे हैं.

पटनाः राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने नए साल पर मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए दरवाजा खुला रहने की बात कही थी. उनके इस बयान से बिहार की सियासत गरमा गयी है. तेजस्वी यादव ने अपने पिता का बयान का खंडन किया. इसके बाद जेडीयू और बीजेपी ने आरजेडी में अंतर्कलह होने की बात कहते हुए पिता-पुत्र पर निशाना साधा.

क्या कहा था लालू ने: नए साल पर पटना में एक निजी चैनल से बातचीत के दौरान आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कहा था-“नीतीश कुमार आते हैं तो काहे नहीं लेंगे साथ. रहें साथ में और काम करें. हां रख लेंगे. माफ कर देंगे उनको. हमलोग मिल बैठकर फैसला लेते हैं. हमारा दरवाजा उनके लिए हमेशा खुला है, उनको भी दरवाजा खोलना चाहिए.” लालू के इसी बयान से बिहार की सियासत गरमायी हुई है.

तेजस्वी की राय लालू से अलगः तेजस्वी यादव ने दो जनवरी को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि लालू यादव ने पत्रकारों को ठंडा करने के लिए इस तरीके का जवाब दिया. हालांकि, इससे पहले भी तेजस्वी यादव ने नीतीश के महागठबंधन में शामिल करने के मुद्दे पर कहा था कि नीतीश कुमार के लिए आरजेडी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं. तेजस्वी ने यह भी कहा कि 2025 नीतीश कुमार की विदाई का साल है.

पिता-पुत्र के बीच वर्चस्व की जंगः राजद सुप्रीमो के बयान के बाद सूबे की सियासत अचानक गरमा गयी है. पहले तो जेडीयू ने लालू प्रसाद यादव के नीतीश कुमार को दिए गए ऑफर को इंकार किया. इसके बाद जेडीयू और बीजेपी के नेता आरजेडी पर हमलावर हैं. लालू यादव और तेजस्वी यादव की अलग-अलग बयान पर तंज कसते हुए पार्टी में अंतर्कलह की बात कह रहे हैं. राजनीति के जानकर भी इससे इंकार नहीं कर रहे हैं.

जेडीयू का पलटवारः जदयू प्रवक्ता अंजुम आरा ने कहा कि लालू यादव और तेजस्वी यादव गलतफहमी में जी रहे हैं. जिस तरीके से राजद सुप्रीमो बयान दे रहे हैं, लगता है कि जेडीयू की तरफ से उनके यहां कोई अर्जी लेकर गया था. पुत्र कह रहे हैं कि आरजेडी में उनके दरवाजे बंद हैं और पिता स्वागत कर रहे हैं. जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि, तेजस्वी यादव ने लालू यादव को राजनीति से अलग कर दिया है.

“पहले पार्टी के बैनर में उनको (लालू यादव) जगह नहीं दी गई. पार्टी की किसी मीटिंग में लालू प्रसाद यादव को नहीं बुलाया जा रहा है. एक तरह से उनको नजरबंद करके रखा गया है. राजद में पिता-पुत्र के बीच अब वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. पिता पुत्र को राजनीतिक रूप से अपने में समझौता करना चाहिए.”– अंजुम आरा, प्रवक्ता जेडीयू

बीजेपी ने साधा निशानाः लालू प्रसाद यादव एवं तेजस्वी यादव के विरोधाभासी बयान पर भाजपा भी अब चुटकी लेने लगी। बीजेपी प्रवक्ता मनीष पांडेय ने आरजेडी पर तंज करते हुए कहा कि पार्टी के नेता एवं कार्यकर्ताओं को यह तय कर लेना चाहिए कि उनको किसकी बात माननी है, क्योंकि दोनों नेता एक-दूसरे से भिन्न बयान दे रहे हैं. लालू प्रसाद पुत्र मोह में नीतीश कुमार को साथ आने का आमंत्रण दे रहे हैं.

“पिछले कुछ चुनाव से आरजेडी लगातार हार रही है. लोकसभा चुनाव हो, बिहार विधानसभा का उपचुनाव हो या फिर विधान परिषद का उपचुनाव. सभी में राजद की हार हुई है. यही कारण है कि पिता पुत्र दोनों हताश एवं निराश हो गए हैं. यही कारण है कि तय कर पा रहे हैं कि किस लाइन पर बात करनी है.”– मनीष पांडेय, भाजपा प्रवक्ता

मीडिया में रहना जानते हैं लालू यादवः नीतीश कुमार को लेकर फिर से चल रही चर्चा पर वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय का मानना है कि यह एक तरह से उनलोगों की मनगढ़ंत कहानी है. सुनील पांडेय का कहना है कि लालू यादव शुरू से ही बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं. लालू प्रसाद यादव के दिए हुए हर बयान मीडिया के सुर्खियों में रहता है. चुनावी मौसम में राजनीति को किस रूप में मोड़ना है, यह लालू यादव बखूबी जानते हैं.

“चुनावी मौसम में किस तरीके से राजनीति को किस रूप में मोड़ना है, यह लालू जी बखूबी जानते हैं. यही कारण है कि लालू प्रसाद यादव ने इस तरीके का बयान दिया है. मेरी नजर में लालू प्रसाद यादव का यह मात्र राजनीतिक बयान है. नीतीश जी अब शायद ही इस तरीके का फैसला करें.”– सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

पार्टी पर लालू की पकड़ ढीली हुईः सुनील पांडेय का मानना है कि पिछले कुछ दिनों से जो बयानबाजी हो रही है उससे लग रहा है कि लालू प्रसाद के हाथ में अब आरजेडी का बहुत कुछ नहीं बचा है. अब आरजेडी का भविष्य तेजस्वी यादव हैं. कुछ दिनों से पार्टी के सभी फैसले तेजस्वी यादव ही ले रहे हैं. सुनील पांडेय इस बात की भी आशंका जता रहे हैं कि पावर का हस्तांतरण होना परिवार के अंदर सहज नहीं रहेगा.

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