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चीन में शुरू होगा अत्याचार का नया दौर? माओ बनने की होड़ में शी जिनपिंग; समझें सियासी हाल

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चीन में शुरू होगा अत्याचार का नया दौर? माओ बनने की होड़ में शी जिनपिंग; समझें सियासी हाल

चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग का शासन है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि यह दौर उनके जीवन भर चल सकता है। कहा जा रहा है कि शी खुद को चीन के दिग्गज नेता माओ जेडॉन्ग के बराबर दिखाने या आगे निकलने की कोशिश में हैं। साथ ही खबरें ये भी हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी की आगामी नेशनल कांग्रेस में राष्ट्रपति शी ‘चेयरमैन’ का दर्जा हासिल कर सकते हैं। खास बात है कि यही दर्जा माओ का भी था। इधर, जानकारी शी के काल में मानवाधिकार को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं।

अगर शी ‘चेयरमैन’ बन जाते हैं, तो वह पूरे जीवन चीन पर न केवल राज करेंगे, बल्कि उनकी शक्तियों में काफी इजाफा हो जाएगा। कहा जा रहा है कि अनिश्चित ताकत माओ के युग की राजनीतिक हिंसा की वापसी भी कर सकती है। इतना ही नहीं शी के बीते 9 साल के शासन को देखते हुए यह खबर अल्पसंख्यक समुदाय, सिविल सोसाइटी और आम जनता के लिए परेशानी भरी हो सकती है।

समझें कैसे माओ से जुड़ रहे तार
कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के 2021 के प्रस्ताव में शी का जिक्र 24 बार किया गया है। जबकि, इस मामले में मओ की संख्या 18 बार है। इससे भी संकेत मिल रहे हैं कि शी खुद को माओ से ऊपर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। मौजूदा राष्ट्रपति की तरफ से आए 2021 के ऐतिहासिक प्रस्ताव में उन्होंने अपनी उपलब्धियों के लिए ‘युग’ या ‘शिदाई’ का इस्तेमाल किया है। जबकि, माओ और डेंग शाओपिंग की उपलब्धियों को ‘काल’ या ‘शिकि’ बताया गया है। खास बात है कि चीन में काल के मुकाबले युग को अहम माना जाता है।

इधर, कम्युनिस्ट पार्टी और चीन की न्यूज मीडिया लगातार शी की उपलब्धियों का गुणगान कर रही है। साथ ही लोगों से भी अपील की जा रही है कि चीनी राष्ट्र को लेकर देखे गए शी के सपने को पाने के लिए संघर्ष करें। अब वैश्विक जानकारों का मानना है कि चीन की आधुनिक राजनीति में शी उस ऊंचाई तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, जहां केवल माओ जा सके हैं। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि वह माओ से भी आगे निकल सकते हैं।

चीन में शी और राजनीतिक हाल
16 अक्टूबर को नेशनल कांग्रेस का आयोजन होना है और 69 वर्षीय शी तीसरी बार निर्विरोध नेता चुने जाएंगे। इसके साथ ही चीनी राजनीति की उस धारणा ‘की शांग वा शी’ का भी अंत हो जाएगा, जिसमें कहा जाता था कि 68 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को रिटायर होना चाहिए। खास बात है कि साल 2013 में सत्ता संभालने के बाद शी ने संभावित प्रतिद्विंदियों को हटाना शुरू कर दिया था। इसके अलावा देश को आर्थिक ताकत बनाने और ताइवान के मुद्दे को उठाने के साथ ही पार्टी और सियासी हलकों में उनका सामना करने वाला कोई नहीं है।

शी का शासन और मानवाधिकार की चिंताएं
जानकारों का कहना है कि शी बीते 9 सालों की तरह ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संस्थाओं की अनदेखी जारी रखेंगे। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, शी के अत्याचारों को लेकर बीजिंग के पत्रकार गाओ यू कहते हैं, ‘क्या है माओ को युग जैसा ही नहीं है?’ खास बात है कि गाओ को पहले जेल में डाल दिया गया था और फिलहाल उन्हें निगरानी में रखा गया है।

इसके अलावा आम लोगों पर भी चीनी एजेंसियों की नजरें रहेंगी। खबरें हैं कि चीन के शहरों में प्रति 1000 लोगों पर 370 सीसीटीवी कैमरा लगाए गए हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शी सरकार तय करती है कि नागरिकों को क्या पता होना चाहिए, उन्हें क्या महसूस करना चाहिए, क्या सोचना चाहिए, क्या कहना चाहिए और क्या करना चाहिए।

 

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