नरेंद्र मोदी ने संसद में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर बहस शुरू की
नई दिल्ली: संसद में आज एक ऐतिहासिक अवसर देखने को मिला, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष बहस की शुरुआत की। यह बहस राष्ट्रगीत के महत्व, उसकी सांस्कृतिक पहचान और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उसकी केंद्रीय भूमिका पर केंद्रित रही।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि “वंदे मातरम् मात्र एक गीत नहीं, यह भारत की चेतना, गौरव और संघर्ष का प्रतीक है।” उन्होंने यह भी याद दिलाया कि इस गीत ने आज़ादी के आंदोलन के दौरान युवाओं और स्वतंत्रता सेनानियों में ऊर्जा का संचार किया था।
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक महत्व
प्रधानमंत्री मोदी और अन्य सांसदों ने बताया कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित ‘वंदे मातरम्’ ने भारतीय जनमानस को एक सूत्र में पिरोया।
संसद में हुई चर्चा के प्रमुख बिंदु इस प्रकार रहे:
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वंदे मातरम् का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में केंद्रीय योगदान
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राष्ट्रवाद की भावना को जगाने में इसकी भूमिका
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भारतीय संस्कृति, सभ्यता और मातृभूमि के प्रति सम्मान का प्रतीक
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150वीं वर्षगांठ को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव
सांसदों की प्रतिक्रियाएँ
विभिन्न दलों के सांसदों ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।
कई सांसदों ने कहा कि:
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यह वर्षगांठ राष्ट्रीय एकता का संदेश देती है
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युवाओं को राष्ट्रगीत के इतिहास से जोड़ना आवश्यक है
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स्कूलों, विश्वविद्यालयों और संस्थानों में ‘वंदे मातरम्’ पर विशेष कार्यक्रम होने चाहिए
संसद में प्रदर्शित एकता ने पूरे देश का ध्यान खींचा।
सरकार की आगे की योजनाएँ
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार:
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राष्ट्रगीत पर राष्ट्रीय स्तर का उत्सव
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संग्रहालयों और सांस्कृतिक केंद्रों में प्रदर्शनी
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डॉक्यूमेंट्री और डिजिटल अभियान
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स्कूल पाठ्यक्रम में राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक संदर्भों को मजबूत करना
इन योजनाओं का उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रगीत के महत्व से परिचित कराना है।
बहस का महत्व
यह बहस मात्र एक औपचारिक चर्चा नहीं थी, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
संसद की यह ऐतिहासिक बैठक आने वाले महीनों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत मानी जा रही है।



