
बिहार शराब कांड की गूज ना सिर्फ बिहार में बल्कि संसद में भी है. बिहार में शराबबंदी को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और अब इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एंट्री ने बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी गलियारों में गर्माहट ला दी है. जहां एक तरफ, बिहार सरकार में शामिल महागठबंधन दल के नेता और स्वयं डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ये कह रहे हैं कि NHRC की टीम को भेजा गया गया है वह खुद नहीं आई है तो यहां हम ये क्लियर कर देते हैं कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के आरोपों से पहले ही आयोग की टीम का गठन किया जा चुका था और आयोग द्वारा कुछ भी ऐसा नहीं किया गया है जो नियमों के विरुद्ध है. दरअसल, आयोग द्वारा बिहार भेजी गई टीम का उद्देश्य संभवत: इतना ही है कि वह ये जान सके कि शराब कांड में जो अभी तक जीवित हैं उनका इलाज अच्छे से चल रहा है? क्या स्थानीय प्रशासन द्वारा पीड़ितों को डराया धमकाया जा रहा है? क्या मृतकों के परिजनों के पुनर्वास के लिए सरकार द्वारा कोई कदम उठाए गए हैं? कुछ लोगों के आंखों की रोशनी इलाज के अभाव में चली गई, इसमें क्या सच्चाई है? जैसे सवालों का उत्तर जानने के लिए NHRC की टीम ने सारण का दौरा किया है और इन सवालों का उत्तर जानने का आयोग के पास पूरा अधिकार है, इसके लिए ना तो राज्य सरकार को मुंह बनाना चाहिए और ना किसी और को. हां, अगर जांच का जिम्मा आयोग किसी दूसरी एजेंसी से कराने की बात कहता तो सवाल-जवाब करना सही माना जाता.