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Umesh Pal केस में 17 साल बाद अतीक अहमद को उम्रकैद, 1 लाख का जुर्माना भी

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17 साल बाद गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद को उमेश पाल अपहरण केस में प्रयागराज के एमपी-एमएलए कोर्ट ने आजीवन कारावास औऱ एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई. अपने आपराधिक करियर के लगभग चार दशकों में अतीक अहमद के दर्जे में यह बदलाव पहली बार देखने में आया. विडंबना यह है कि मामला उसी उमेश पाल के अपहरण का है, जो अतीक की साजिश का शिकार बना और 24 फरवरी को दिनदहाड़े उसकी हत्या कर दी गई थी. सोमवार देर शाम अतीक अहमद को भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच गुजरात की साबरमती जेल से प्रयागराज की नैनी जेल लाया गया. अतीक के भाई व पूर्व विधायक अशरफ को भी बरेली सेंट्रल जेल से नैनी जेल लाया गया था. उमेश पाल अपहरण मामले में अतीक और अशरफ समेत  दिनेश पासी, खान सौलत हनीफ, जावेद, फरहान, इसरार, आबिद प्रधान, आशिक उर्फ ​​मल्ली और एजाज अख्तर हैं. एक आरोपी अनार अहमद की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी. उमेश पाल 2005 में बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल की हत्या का मुख्य गवाह था. उसका अपहरण कर लिया गया था और मामले में कथित रूप से मुकरने के लिए धमकाया गया था. हालांकि अतीक की धमकियों के बावजूद उमेश नहीं माने.

कौन थे उमेश और राजू पाल 
अतीक कथित तौर पर राजू पाल की हत्या में शामिल था, जिसकी 2005 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उमेश पाल इस हत्याकांड का गवाह थे. अतीक ने दबाव बना उमेश का बयान बदलवा दिया था. हालांकि 2007 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, तो उमेश ने अतीक, अशरफ और अन्य के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया. इसके बाद 2009 में अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए गए. 2016 में सुनवाई के दौरान उमेश पाल पर फिर से हमला हुआ. अतीक के आदमियों ने कथित तौर पर उसे अदालत की इमारत की चौथी मंजिल से नीचे फेंकने की कोशिश की थी. हालांकि पुलिस ने उसे बचा लिया. इस संबंध में प्रयागराज के कर्नलगंज थाने में मामला भी दर्ज किया गया था. 2017 में राज्य में राजनीतिक दल बदलने और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ मामले की सुनवाई में तेजी आई. अतीक ने तब इस मामले में मुकदमे को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था. हालांकि उसे कोई राहत नहीं मिली. इस बीच अतीक गिरोह के खिलाफ राज्य सरकार की अथक जांच से माफिया डॉन दबाव में था. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अतीक को उत्तर प्रदेश से बाहर रखने का आदेश दिया था. उसके बाद उसे गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती सेंट्रल जेल भेज दिया गया. इस बीच उमेश पाल अपहरण मामले में सुनवाई ने गति पकड़ ली. 2022 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट, जो एमपी-एमएलए विशेष अदालत है को 16 मार्च तक मामले की सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया. समय सीमा के बाद अभियोजन पक्ष ने जनवरी और फरवरी में अदालत के समक्ष कम से कम आठ गवाहों की गवाही सुनिश्चित की. सबसे अहम गवाह उमेश पाल ने भी कोर्ट के सामने अपनी गवाही दर्ज कराई.  24 फरवरी को सुनवाई के बाद उमेश पाल को अतीक के बेटे असद और उसके हथियारबंद लोगों ने गोली मार दी थी. उमेश पाल को बचाने की कोशिश में यूपी पुलिस के दो गनर भी शहीद हो गए.

गंभीर धाराओं में दर्ज हुआ था केस
हालांकि उमेश पाल अब नहीं हैं, लेकिन उनकी शिकायत के आधार पर अतीक को सजा का सामना करना पड़ा है. अतीक और अन्य आरोपियों पर आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 364ए, 341, 342,504, 506, 120बी और क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट की धारा 7 के तहत मुकदमा चलाया गया. ये सभी ओनल कोड के कड़े खंड हैं और आजीवन कारावास तक की अधिकतम सजा का प्रावधान कर सकते हैं. निचली अदालत ने फैसला सुनाते समय आरोपी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है. आरोपियों को सुबह 11 बजे कोर्ट में लाया गया है.

अतीक का आपराधिक-राजनीतिक बैकग्राउंड
1985 से अब तक अतीक अहमद पर 100 मामले दर्ज हैं. 50 मामले जहां विचाराधीन हैं, वहीं 12 अन्य में उसे बरी कर दिया गया है, जबकि दो अन्य मामलों को तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने 2004 में वापस ले लिया था. अतीक के भाई पर 53 मुकदमे दर्ज हैं; जिनमें से एक में उसे बरी कर दिया गया है जबकि अन्य पर विचार चल रहा है. अतीक के बेटों पर भी आठ मामले दर्ज हैं. उनमें से सात का परीक्षण चल रहा है जबकि एक की पुलिस अभी भी जांच कर रही है. अतीक की पत्नी शाइस्ता पर भी चार मुकदमे हैं. अतीक 1989 में राजनीति में सक्रिय हुआ और उसी वर्ष  इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की. उसने इलाहाबाद पश्चिम सीट से दो बार क्रमशः 1991 और 1993 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीता. 1996 में वह उसी सीट पर सपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीता. हालांकि 1998 में सपा ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो 1999 में अपना दल (एडी) में शामिल हो गया. इसी पार्टी के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. 2002 के विधानसभा चुनाव में अतीक ने फिर से इलाहाबाद पश्चिम सीट से एडी के टिकट पर जीत हासिल की.  2003 में अतीक सपा के पाले में लौट आया और 2004 में फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से जीता. कभी यह सीट पंडित जवाहर लाल नेहरू की हुआ करती थी.

नैनी जेल की सुरक्षा की गई कड़ी
सोमवार देर शाम को साबरमती जेल से अतीक अहमद को प्रयागराज के नैनी जेल लाया गया. कड़ी सुरक्षा के बीच उसे नैनी केंद्रीय कारागार में दाखिल कराया गया. पुलिस के काफिले में करीब 35 गाड़ियां शामिल रहीं. दर्जन भर पुलिस और सरकारी वाहनों के अलावा बाकी उसके रिश्तेदारों और वकीलों की गाड़ियां काफिले में चल रही थीं.  अतीक के काफिले के पहुंचने से पहले सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम कर लिए गए थे. अतीक के काफिले के साथ उनके परिवार की गाड़ियां भी प्रयागराज पहुंचीं. अतीक की बहन ने हालांकि साबरमती से प्रयागराज लाए जाते वक्त एनकाउंटर की आशंका जताई थी. अतीक के नैनी जेल में आमद के मद्देनजर सोमवार दोपहर से ही नैनी जेल में पुलिस बल की भारी तैनाती रही और मीडिया कर्मियों का जमावड़ा लगा रहा. नैनी जेल में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश रोक दिया गया.

उमेश पाल की पत्नी ने मांगी थी फांसी 
अतीक अहमद को नैनी लाए जाने की कवायद और उसे पूरी किए जाने के बीच पल-पल माहौल बदलता रहा. उमेश पाल की पत्नी जया पाल ने भी अतीक अहमद के लिए फांसी की सजा की मांग की, तो मंगलवार को वह अदालत में भी फैसले के वक्त हाजिर होने की इच्छा रखती थी. हालांकि बाद में सुरक्षा कारणों से उन्होंने अपना फैसला बदल दिया. फैसले से पहले उमेश पाल के घर की सुरक्षा व्यवस्था औऱ चाक-चौबंद कर दी गई थी. जया पाल ने कहा कि मैं कोर्ट से उम्मीद कर रही हूं कि अतीक अहमद को फांसी दी जाए. जब तक जड़ नहीं खत्म होगी, तब तक कुछ नहीं होगा.

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