
आज़ादी के बाद देश में भ्रष्टाचार इस कदर फैला कि लगा मानो हमें अंग्रेजी राज से नहीं बल्कि घोटाला करने की आज़ादी मिल गई हैं।
कहीं हिन्दू हित, कहीं मुस्लिम हित, कहीं दलित हित, कहीं अगड़े तो कहीं पिछड़े हित की बात करने वाले हमारे राजनेता सही मामले में भारतीय लोकतंत्र और समाज के पतन के जिम्मेदार हैं।
आज़ादी के बाद हमारे माननीय राजनेता गण देश, समाज और लोकतंत्र के पतन का दस्तावेज तैयार करने में जैसे मशगूल हो।भारत में भ्रष्टाचार बढ़ाने में कुछ देश द्रोही नेता और भ्रष्ट अधिकारी पूर्णतः जिम्मेदार हैं।लम्बी-लम्बी देश भक्तिपूर्ण बात करने वाले ये कुछ सफेद पोश धारी ही देश को भ्रष्ट करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
भारत मे कुल 4,130 एम.एल.ए. और 452 एम.एल.सी.है अर्थात कुल 4,572 विधायक हैं।प्रति विधायक वेतन भत्ता मिलाकर प्रतिमाह दो लाख का खर्च होता हैं।अर्थात 91 करोड़ 64 लाख रुपैया प्रतिमाह इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभग एक हजार एक सौ करोड़ रुपये हुए।भारत में लोकसभा और राज्य सभा को मिलाकर कुल 776 संसद हैं।इन सांसदों की वेतन भत्ता मिलाकर प्रतिमाह 5 लाख दिया जाता हैं।अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रतिमाह 38 करोड़ 80 लाख हैं और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपैया वेतन भत्ता दिया जाता हैं।अर्थात भारत के विधायकों और सांसदो के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रुपैया ख़र्च होता हैं।यह तो इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई।इनके आवास,रहने,खाने ,यात्रा भत्ता,इलाज,विदेशी सैर सपाटा आदि का खर्च भी लगभग इतना ही हैं।अर्थात 30 अरब रुपैये खर्च इन विधायकों और सांसदों पर होता हैं। हाल के कुछ वर्षों में सांसदों, मंत्रियों और विधायकों द्वारा पद का दुरुपयोग कर अवैध तरीके से भारी भरकम राशि के घोटालों के मामले प्रकाश में आते रहे है।बावजूद इसके कितनों को भरतीय दंड विधान की धाराओं के अंतर्गत सजा हो पाई यह जग जाहिर हैं।घोटालों के आरोपी सांसद, मंत्री या राजनेता तथाकथित तौर पर अति गणमान्य व्यक्ति का दर्जा बरकरार रखे हुए हैं।
अर्थात हर साल नेताओं के ऊपर कम से कम पचास अरब रुपैये खर्च होता हैं।इन खर्चो में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन,पार्टी के नेता,पार्टी अध्यक्ष उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं हैं।यदि उसे भी जोड़ा जाय तो कुल खर्च लगभग एक सौ अरब रुपैया हो जाएगा।अब सोचिए हम प्रति साल नेताओं पर एक सौ अरब रुपैये से अधिक खर्च करते हैं।बदले में गरीब लोगों को क्या मिलता हैं? क्या यही लोकतंत्र हैं? प्रत्येक भारतवासियो को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा।आप अपनी देश भक्ति का परिचय दे।
अब गौर कीजिए इनके सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर।एक विधायक को दो बॉडी गार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कमसे कम पाँच पुलिसकर्मी और यानी सात पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती हैं।सात पुलिस का वेतन लगभग 25 हजार रुपैये प्रतिमाह के दर से एक लाख 75 हजार रूपए होता हैं।इस हिसाब से चार हजार पाँच सौ 82 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष हैं।इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 16 करोड़ रुपैये खर्च होता हैं।जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता,मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों,, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16 हजार जवान अलग से तैनात हैं।जिन पर सालाना कुल खर्च लगभग सात सौ 76 करोड़ बैठता हैं।इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर साल लगभग 20 अरब रुपैये खर्च होता हैं।
भारतीय जनता की गाढ़ी कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा नेताओं एवं मंत्रियों के ऊपर खर्च किया जाता रहा हैं।अधिकांश राजनेता भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके हैं।यह क्या कम हास्यस्पद नहीं है कि हमारे सांसदों और विधायकों को अनाधिकृत विलासिता एवं तमाम सुख-सुविधाओं बिल्कुल मुफ़्त मिलती हैं।इससे भी बढ़कर यह कि कोई परिभाषित जाँब प्रोफ़ाइल या विवरण नहीं,उम्र और शिक्षा की कोई तय सीमा नहीं, कोई अनुशासन नहीं, कोई रिपोर्टिंग नहीं, जानकारी भी जरूरी नहीं और इन्हें इन सबके लिए ही पैसे मिलते हैं।संधीय सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के कार्य के विपरीत सांसदों द्वारा किये जाने वाले काम के लिए न तो किसी विशेषज्ञता की जरूरत होती हैं और न ही किसी शैक्षिक योग्यता की।
: बिहार में 243 विधायकों में 163 विधायक पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 17वीं विधानसभा में नव निर्वाचित विधायको में 123 पर गंभीर किस्म के आपराधिक मामले दर्ज हैं।बिहार इलेक्शन और ए.डी. आर.की रिपोर्ट ने बिहार विधानसभा में चुनाव में निर्वाचित प्रतिनिधियों के शपथ पत्रों का विश्लेषण जारी किया था।
बिहार इलेक्शन वाच के समन्वयक राजीव कुमार कहते हैं कि निर्वाचित होने वाले 19 विधायकको ने अपने शपथ पत्र में हत्या जैसे आरोपों की जानकारी दी हैं।जबकि 31 विधायकों पर हत्या के प्रयास के आरोप हैं।आठ विधायकों पर महिला हिंसा के आरोप हैं।
दलवार आपराधिक मामले वाले विधायकों को देखा जाय तो 75 में से 54 विधायक राजद के हैं, जबकि भाजपा के निर्वाचित होने वाले 74 विधायकों में 47 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।जदयू के 43 विधायकों में 20 पर तो कांग्रेस के 19 विधायकों में 16 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।माले के 12 विधायकों में 10 पर तो ए. आई.एम.आई.एम.के पांचो विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
बिहार में 243 विधायकों में 194 विधायक करोड़ पति हैं।नव निर्वाचित विधायकों में भाजपा के 75 में से 65 विधायक , राजद के 74 में से 64 विधायक , जदयू के 43 में से 38 विधायक और कांग्रेस के 19 में से 14 विधायक करोड़ पति हैं।पाँच करोड़ से अधिक सम्पति वाले 61 विधायक तो दो करोड़ से पाँच करोड़ की सम्पति वाले 87 विधायक , जबकि दो करोड़ से अधिक सम्पति वाले 72 विधायक निर्वाचित हुए हैं।निर्वाचित होने वाले विधायकों की औसत सम्पति 4.32 करोड़ हैं।जबकि ये लोग चुनाव में करोड़ो से अधिक रुपैया ख़र्च कर देते हैं फिर भी इनकी अकूत सम्पति कम नही होता। आज एक गरीब व्यक्ति किसी भी किम्मत पर चुनाव नहीं जीत सकता।आजके वर्तमान समय में गरीबों की वोट से चुनकर आने वाले नेता अमीरों की रखैल बन जाती हैं और जनता भी चुपचाप देखती रहती हैं।क्या यही प्रजातंत्र और लोकतंत्र हैं।
आज राजनीति में जाने की राह में सबसे बड़ी बाधा उसमें निवेश होने वाली भारी भरकम राशि हैं।यह हमारी राजनीतिक व्यवस्था की नंगी सच्चाई है। 16वीं लोकसभा के लिए चुने गए 543 सांसदों की कुल सम्पति तीन हजार करोड़ से भी अधिक हैं।इसका मतलब हैं कि एक सांसद की औसत सम्पति पाँच करोड़ रुपैये से अधिक हैं।फिर भी वहीं वापस आते हैं। हैरानी होती हैं कि उन्हें क्यों भुगतान किया जाना चाहिए।क्योंकि वेतन के नाम पर उन्हें जो छोटी सी रकम मिलती हैं उससे क्या फर्क पड़ने वाला हैं और उससे बुरा यह कि हमारे सांसद औसतन राष्ट्रीय निर्धनता स्तर से नौ गुणा ज्यादा पाते हैं।बीते साल हमने यह भी देख चुके हैं कि सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी के मुद्दे पर किस तरह सभी सांसद दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर इस विधेयक को पारित किया।यह भी भारतीयों को कम शर्मिंदा नहीं करता कि उसके रहनुमा इस मुद्दे पर वाजिब बहस किए बगैर ही इसे संसद में पास करा लिए ।
अमेरिका में सांसदों को अपनी वेतन के बाद में बाहर से 15 फीसदी से ज्यादा कमाई करने की इजाज़त नहीं हैं।जबकि भारत में सांसदों की औसत सम्पति पिछले कार्यकाल के मुक़ाबले तीन सौ गुणा बढ़ गई हैं।जर्मनी में सांसदों को अपनी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक मिलता हैं।जबकि स्विजरलैंड में सांसदों को कोई वेतन नहीं मिलता।उन्हें संसद सत्र के दौरान अपने नियोक्ताओं से सिर्फ पेड़ लिव मिलती हैं।मैक्सिको में सांसद न तो कोई और काम करते हैं और न ही किसी राजनीतिक दल के पदाधिकारी हो सकते हैं।ऐसे में हमारे महान सांसद स्वंय विचार करें कि वे स्वयं को कहा पाते हैं।
भ्रष्टाचार निवारण में सरकार , अधिकारी,कर्मचारी व आम जनता को साथ मे मिलकर और एकजूट होकर कार्य करना होगा तभी भारत को भ्रष्टाचार जैसे दीमक से मुक्ति मिल सकती हैं।भरतीय समाज की सबसे बड़ी विडम्बना यही हैं जो भारतीय समाज को सदियों से दीमक की तरह चाट रहा हैं।भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के अभियान में हमें आगे आना होगा और देश को भ्रष्टाचार रूपी दीमक से मुक्त कराना हैं।भारत को विश्व गुरु व सम्पन्न राष्ट्र बनाने में हम सबकी सहभागिता की नितान्त आवश्यकता हैं।
बहरहाल,जनता को यह सोचना होगा कि अच्छी बातें करने से कुछ बदलने वाला नहीं हैं।वास्तव में अगर बदलाव लाना हैं तो जाती व धर्म से ऊपर उठकर अच्छे लोगों को सपोर्ट करना होगा।राजनीति को अपराध मुक्त करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट चाहे जितना भी प्रयास कर लें।लेकिन जनता जब तक ऐसे लोगों का चयन करना बन्द नहीं करेगी ,टैब तक स्वच्छ राजनीत की बात करना केवल कोरी कल्पना ही होगी।माननीयों को भी सोचना होगा कि धनबल-बाहुबल से जीत व सत्ता तो मिल सकती हैं।पर इतिहास में पहचान पाने के लिए एक आदर्श स्थापित करना होगा।आदर्शवादी नेताओं के नाम पर राजनीति तो हो सकती हैं।लेकिन उनके जैसा बनने के लिए उनके आदर्शो को अपनाना होगा।जो थोड़ा मुश्किल तो हैं पर असम्भव नहीं
लेखक – स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्र तथा चैनलों में अपनी योगदान दे रहे है।
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