
पटना HC ने 65 फीसदी आरक्षण पर लगाई रोक, नीतीश सरकार ने SC का खटखटाया दरवाजा
पिछले साल पटना हाई कोर्ट ने प्रदेश में आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया था. 20 जून को इस पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के इस आदेश को खारिज कर दिया. जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
बिहार में पिछले साल नवंबर में विधानमंडल में सर्वसम्मति से आरक्षण का दायर 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दी गई थी. जिसके बाद इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. वहीं, अब हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. बता दें कि प्रदेश में जातीय आधारित गणना के बाद प्रदेश में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाते हुए 65 फीसदी कर दिया था. बता दें कि 20 जून को पटना हाई कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा गया था कि यह फैसला आरक्षण के दायरे से बाहर है और बिहार सरकार के फैसले को रद्द कर दिया. हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के इस आदेश को न्याय संगत नहीं माना और कहा कि अगर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की जरूरत पड़ती है तो यह फैसला भी संवैधानिक बेंच ही तय करेगी.
नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा
आपको बता दें कि नीतीश सरकार ने पटना हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. यह याचिका राज्य सरकार के वकील मनीष सिंह ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी जाए क्योंकि इससे भर्ती प्रक्रिया में असर पड़ेगा.
पटना हाई कोर्ट ने फैसले को किया खारिज
बता दें कि 20 जून को आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट ने 87 पन्नों के जरिए स्पष्ट किया था कि प्रदेश में 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी आरक्षण करने का कोई भी औचित्य नहीं है. जातिगत सर्वेक्षण में ओबीसी व ईबीसी की कुल जनसंख्या प्रदेश में 63 फीसदी था. वहीं, SC\ST प्रदेश में 21 फीसदी हैं. अगर राज्य सरकार आरक्षण का दायरा बढ़ाती है तो यह प्रदेश के विवेक का हनन है.